बिहार तरक्की कर रहा है इस पर वाद विवाद का दौर है, और ये विवाद सिर्फ इस लिए है क्यूंकि इस तरक्की के लिए श्रेय किसे मिले ?
एक तरफ सरकार बिना हाथ पैर डुलाए दलालों, नेताओं और मीडिया और बाहुबलियों की तरक्की कर विकास का दावा करती है. राष्ट्रीय राज मार्ग का बनना बिहार सरकार के हिस्से नहीं आता और अभी अभी बरैनी थर्मल पवार के लिए केन्द्रीय विकास अनुदान भी नितीश के हिस्से में नहीं आना है तो क्या नितीश का मुखोटा बिहार विकाश है.
डोमा मंडल मधुबनी का रहने वाला है, पहले ये दिल्ली में नौकरी करता था. बिन माँ बाप का डोमा शादी के बाद मधुबनी में रह कर ही जीविकोपार्जन में लगा. पहले किराए का रिक्शा चला कर अपनी और अपने परिवार की जीविका चलाने वाला डोमा आज अपने रिक्शे को खुद चलता है, हाथ में मोबाईल मूंह में पान रिक्शे पर आइना और शान से अपना काम करता डोमा ने नि:संदेह तरक्की की है मगर इसके लिए हम किसे श्रेय देंगे.
सरकार को, उसके योजनाओं को, सरकारी योजना को अमली जामा पहनाने वाले निकम्मे अफसरशाह को या डोमा की मेहनत और लगन को. बताता चलूँ कि डोमा के बाप के देहान्त के बाद डोमा की माँ ने इंदिरा आवास के लिए आवेदन दिया, आवास तो नहीं मिली हाँ डोमा कि माँ अपने अनाथ बच्चे को छोर कर दुनिया से जरूर चली गयी. आवास नहीं मिला क्यूंकि वार्ड काउंसेलर से लेकर सरकारी विभाग तक को रिश्वत ना दे पायी.
आज डोमा के पास अपना घर है, अपना रिक्शा है अपना परिवार है और इन सबके साथ खुशहाल जिन्दगी.
आप बताइए किसे श्रेय दें.
1 comment:
इसमें सरकार की क्या भूमिका है , पूरा श्री डोमा को ही जाता है !
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