शिरीष खरे
18 साल से कम उम्र में मां बनने वाली लड़कियों से पैदा होने वाले बच्चों पर कुपोषण का खतरा सबसे ज्यादा मंडराता है। बीएमजे यानि बिट्रिश मेडीकल जनरल ने हाल में प्रकाशित अपने शोध अध्ययन से ऐसा जाहिर किया है।
बीते दशक की महत्वपूर्ण आर्थिक वृद्धि के इर्दगिर्द, सबसे ज्यादा होने वाली मौतों के हिसाब से दुनिया के 5 देशों में भारत भी शामिल है। भारत में 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 44.5% (करीब आधी) औरतें ऐसी हैं- जिनकी शादियां 18 साल के पहले हुईं हैं। इन 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 22% (करीब एक चौथाई) औरतें ऐसी हैं- जो 18 साल के पहले मां बनीं हैं। इन कम उम्र की लड़कियों से 73% (सबसे ज्यादा) बच्चे पैदा हुए हैं। फिलहाल इन बच्चों में 67% (आधे से बहुत ज्यादा) कुपोषण के शिकार हैं।
बोस्टन यूनिवर्सिटी के पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेन्ट की एसोशियट प्रोफेसर अनीता राज और उनके सहयोगियों का यह शोध अध्ययन मूलतः भारत में कम उम्र के शादीशुदा संबंधों, शिशु और बाल मृत्यु-दर से जुड़ा है। यह अध्ययन 15 से 49 साल की तकरीबन 1,25,000 भारतीय औरतों के प्रतिनिधि नमूने पर आधारित है। शोध के लिए एकत्रित जानकारियों को नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (2005-06) से लिया गया है।
यह शोध बताता है कि कम उम्र में शादी करने, दो बच्चों के बीच अंतर न रखने, गर्भावस्था के समय पर्याप्त भोजन न मिलने, प्रसव के समय थोड़ा-सा भी आराम न मिलने और इसी दौरान चिकित्सा की सुविधाओं के अभाव में कुपोषण किस तरह से लहलहा उठता है। यह शोध ‘कम उम्र की किशोरियों और बच्चों’ को केन्द्र में रखकर भारत के कुपोषण की व्याख्या करता है। शोध यह भी मानता है कि कम उम्र में शादी करने वाली औरतों को अगर उनके पतियों या ससुराल वालों द्वारा दरकिनार किया जाता है तो ऐसी औरतों को अपने और अपने बच्चों के लिए भोजन जुटा पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसमें भारत की भुखमरी को पारिवारिक व्यवस्था से लेकर सामाजिक तंत्र, राजनीति से लेकर विचारधारा और व्यवहारिकता तक में मौजूद लैंगिक भेदभाव से जोड़कर देखा गया है।
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शिरीष खरे ‘चाईल्ड राईटस एण्ड यू’ के ‘संचार-विभाग’ से जुड़े हैं।
संपर्क : shirish2410@gmail.com
ब्लॉग : crykedost.tk
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Shirish Khare
C/0- Child Rights and You
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(Near Chinchpokli Station)
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I believe that every Indian child must be guaranteed equal rights to survival, protection, development and participation.
As a part of CRY, I dedicate myself to mobilising all sections of society to ensure justice for children.
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