भारत के एक ग़ैर सरकारी संगठन 'प्रथम' ने देशव्यापी सर्वेक्षण में पाया है कि 50 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो वैसे तो पाँचवीं कक्षा तक पहुँच गए हैं लेकिन वे दूसरी कक्षा की किताबों को भी पढ़ने मे सक्षम नही हैं.
शुक्रवार को नई दिल्ली मे जारी की गई इस रिपोर्ट में भारत में शिक्षा की गुणवत्ता पर गंभीर चिंता जताई गई है.
रिपोर्ट मे यह भी कहा गया है कि प्राथमिक शिक्षा में पिछले कुछ वर्षों मे बेहतरी के कुछ प्रमाण भी मिले हैं.
रिपोर्ट के अनुसार कुछ राज्यों में इस स्थिति मे सुधार आया है. ये राज्य हैं महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक. इन राज्यों में मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, और महाराष्ट्र सबसे उपर हैं, जिनमें 70 प्रतिशत पाँचवीं कक्षा के बच्चे दूसरी कक्षा का पाठ पढ़ने में सक्षम पाए गए.
इसके अलावा रिपोर्ट गणित की पढ़ाई के बारे मे भी निराशाजनक तस्वीर पेश करती है. इस रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ़ 36 प्रतिशत बच्चे ही ऐसे हैं जो सामन्य गुणा-भाग कर सकते हैं. वर्ष 2007 मे ये संख्या 41 प्रतिशत पाई गई थी, मतलब यह कि इस क्षेत्र मे हालात ख़राब हुए हैं.
रिपोर्ट के अनुसार भारत मे प्राइवेट ट्यूशन का चलन बढ़ा है.
भारत मे आमतौर पर ये धारणा रही है कि प्राइवेट स्कूलों मे शिक्षा का स्तर बेहतर होता है. रिपोर्ट कहती है कि 2005 की तुलना मे 2008 में प्राइवेट स्कूलों मे दाख़िला लेने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है.
इस सर्वेक्षण में कुछ सकारात्मक तथ्य भी सामने आए हैं.
रिपोर्ट मे कहा गया है कि नामांकन में स्पष्ट वृद्धि दर्ज की गई है, यानी स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है. इस क्षेत्र मे बिहार ने काफ़ी अच्छा काम किया है.
रिपोर्ट मे इस बात पर भी ध्यान दिया गया है कि जिन बच्चों का नाम स्कूलों के रजिस्टरों मे दर्ज है, उनमें से कितने बच्चे वास्तव मे स्कूल जाते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण भारत के अधिकतर सरकारी स्कूलों मे किसी भी दिन उपस्थिति दर 75 प्रतिशत के आसपास रहती है.
हालाँकि केरल, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, तमिलनाडु और नागालैंड जैसे कुछ राज्यों में किसी भी दिन की उपस्थिति 90 प्रतिशत तक रहती है.
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