बुधवार को राज्य मंत्रिमंडल ने फ़ैसला किया था कि नए टैक्सी चालकों को तभी परमिट दिया जाएगा जब वो राज्य में 15 साल के निवास के साथ-साथ मराठी भाषा के जानने की शर्तों को पूरा करते हों ।
महाराष्ट्र सरकार के इस फ़ैसले से ख़लबली मच गई थी और उत्तर भारत से संबंध रखने वाले अनेक नेताओं ने इसकी कड़ी आलोचना की थी। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने इसे 'संविधान की आत्मा के ख़िलाफ़' ठहराया था । कैबिनट के फ़ैसले के उलट गुरुवार को मुख्यमंत्री अशोक चव्हान ने कहा, "नए टैक्सी चालकों के लिए परमिट पाने के लिए कोई भी स्थानीय भाषा, जैसे हिंदी और गुजराती का जानना अनिवार्य होगा ।"
सरकार ने यह भी स्पष्टीकरण दिया कि कैबिनेट के ताज़ा फ़ैसले से उन चालकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जिनके पास पहले से वैध लाइसेंस है।
मुख्यमंत्री के ताज़ा बयान को राजनीतिक विश्लेषक सरकार का यू-टर्न मान रहे हैं, लेकिन अहम सवाल यह है कि सरकार कैबिनेट के फ़ैसले को पलटती है या नहीं ।अशोक चव्हान का कहना था,"कैबिनट ने केवल महाराष्ट्र मोटर वाहन नियमों पर अमल करने का फ़ैसला किया था, जो नियम 1989 में बनाए गए थे। जिसके तहत उन व्यक्तियों को टैक्सी चालक के परमिट देने की शर्त रखी गई है, जो राज्य में 15 साल से रह रहे हों और उन्हें स्थानीय भाषा की जानकारी भी हो । "
मुंबई शहर में अनेक टैक्सी चालक उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड या झारखंड से हैं। लगभग 90 हज़ार टैक्सी चालकों में से अधिकतर मराठी इसलिए नहीं जानते हैं क्योंकि वे मूलत: उत्तर भारत के हिंदी भाषी राज्यों से आए हैं ।
महाराष्ट्र में हर साल 4000 नए परमिट जारी किए जाते हैं और इन्हें पाने वालों में अधिकतर उत्तर भारत से आने वाले होते हैं ।
राजनीतिक विश्लेषक और स्थानीय मीडिया के अनुसार राज्य में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की गठबंधन सरकार ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और शिवसेना के समर्थकों को लुभाने के मक़सद से ये कदम उठाया था ।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे पिछले कुछ साल से राज्य में हिंदी भाषियों के खिलाफ़ आंदोलन चला रहे हैं। इसके कारण दुकानों और दफ़्तरों के बाहर भी नाम मराठी में लिखे जाने लगे हैं । बॉम्बे टैक्सीमैन एसोसिएशन भी कैबिनेट के फ़ैसले की आलोचना की थी और उसे राजनीति से प्रेरित ठहराया था ।
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