बिहार विकाश कर रहा है, हकीकत को माने या सरकारी भोंपू मीडिया के साथ जी डी पी का गुणगान करें.

बिहार का चंहुमुखी विकाश हो रहा है और सारे देश में अग्रणी रहते हुए बिहार ने 11.3 प्रतिशत विकाश दर को हासिल किया है. ये दर राष्ट्रीय विकाश दर से भी अधिक है और सिर्फ गुजरात इस मामले में बिहार से मामूली अंतर से आगे है.

ये कहना है केंद्रीय सांख्यिकी संगठन का जिसके अनुसार 2004से 2009 के बीच राज्य के जीडीपी में औसतन 11.03 प्रतिशत की सालाना बढ़ोतरी हुई है। वहीँ बिहार का आइना क्या कहता है ?
क्या गणित के इस आंकड़े को बिहार के आम लोगों से हम मिला कर देख सकते हैं ?


मधुबनी बिहार राज्य पथ परिवहन बस डिप्पो.


नितीश के सुशासन और विकाश का भोंपू मीडिया का बनना समझ में आता है कि आने वाला चुनाव है और उस से पहले विकाश की आंधी के नाम पर करोडो का सरकारी विज्ञापन जो बिहार के अखबारों और मीडिया के अलावे सुदूर अन्य प्रान्तों में भी दिया जाएगा और दिल्ली के तमाम मीडिया संस्थान इस विज्ञापन के बाजार को लालची बनिये के नजर से देख अपने अपने हिस्से की हिस्सेदारी करने के लिए विकाश गाथा में नितीश के साथ सुर में सुर मिला कर रेंक रहे हैं.


आइये और बताइए की हमने 11.3 प्रतिशत विकाश कैसे किया जबकी ........


  • पिछले साल किसी भी नए उद्योग की स्थापना नहीं?
  • बिहार का बिजली उत्पादन (साल ०९-१०) - ० मेगा वाट
  • नए रोज़गार के अवसर - नगण्य
  • सड़क निर्माण (कुछ हद तक )
  • नए योजना (रोज़गार और आधारभूत ढांचागत विकास)- नगण्य


  • अभी कुछ दिनों पहले ही अपने गाँव से लौट कर आया हूँ हकीकत को नजदीक से देखा और ब्लाग पर पोस्ट डाल जो देखा सो लिखने का प्रयास किया इसी कड़ी में बिहार परिवहन व्यवस्था की झलकी जो बडबोले नितीश की सच्चाई को बयां करती है.


    डिपो में बस, विकाश के शव !


    आप खुद तस्वीरों को देखिये कि जहाँ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र के साथ पड़ोसी उत्तरप्रदेश में सरकारी परिवहन सरकार की रीढ़ की हड्डी है वहीँ बिहार सरकार ने किस तरह से बिहार को रीढ़ विहीन बना कर रखा हुआ है.


    विकाश पर विलाप करती बिहार परिवहन की बसें.


    जी हाँ विकाश की आंधी में बिहार उड़ गया और बह गयी इस बयार में मीडिया भी मगर जो जस का तस रह गया उनमे से एक बिहार राज्य पथ और परिवहन निगम जिसमें विभाग ना के बराबर है बसें आपने देखी और परिवहन कर्मचारी सालो से बिना तनख्वाह के कई काल के गाल में समां चुके हैं और जो बचे हैं वो अपनी अंतिम सांस का इन्तेजार कर रहे हैं.


    नि:संदेह विकाश हुआ है क्यूंकि ना होता तो अपने मीडिया संस्थान के लिए पत्रकारिता के अलावे व्यक्तिगत राय में भी रवीश कुमार नेकस्बे में बिहार के विकाश का जम कर उल्लेख ना किया होता.


    दिनानुदीन राजनीति और पत्रकारिता का बढ़ता घालमेल दोनों का चोर चोर मौसेरे भाई बनना स्वस्थ लोकतंत्र में असाध्य रोग है.

    1 comment:

    Kusum Thakur said...

    पटना छोड़कर ,किसी भी जगह से बिहार पहुँचने में जितनी दिक्कत होती है वह जो जाता है उसे ही पता है . सिर्फ कुछ रोड बन जाने से विकास नहीं कहा जा सकता . आपको सच्चाई बताने के प्रयास के लिए धन्यवाद .

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