दुनिया की पहली नस्तालिक महिला एवं पहली हिंदी लैंगिक विकलांग ब्लागरों के संग चले हम


सम्मान वगैरह तो वैसे भी भड़ासियों के हिस्से में कभी आता ही नहीं है और आता भी है तो हमें हज़म नहीं होता है। अभी हाल ही में एक स्वयंभू हास्य कलाकार ने वर्ष २००९ के सर्वश्रेष्ठ ब्लागर का सम्मान करने का टोटका करा और शर्त थी कि पहले रजिस्टर कराओ। अब अपने भाई अविनाश वाचस्पति भोले-भाले आदमी ठहरे, पहुंच गये भलमनसाहत के चलते मना न कर पाने की मनोस्थिति में पशोपेश में उलझ कर। दिमाग में भाई के उठापटक चलती रही और फिर आखिर दिल की आवाज़ जीत गई। भाई ने प्रतियोगिता से अपना नाम ही वापिस ले लिया और अपने ब्लाग पर एक लम्बी-चौड़ी-उत्तम स्वास्थ्य वाली पोस्ट भी लिख मारी। तमाम लोग आकर चींऊ-चींऊ करे उस पोस्ट पर। भला सम्मान किसे नहीं चाहिये, प्रसिद्धि की भूख किसे नहीं है? लेकिन कुछ लोग भाईसाहब की तरह से अपवाद होते हैं जो कि अपना काम करते हैं और उनके करने से काम सम्मानित होता है। अबे! ये मत सोचना कि हम तेल लगा रहे हैं , हमें आदत नहीं है लेकिन जो है सो बक दिया करते हैं। भड़ासियों को भी आयोजित सम्मान वगैरह के पीछे दौड़ कर आभासी प्रसिद्धि की लालसा नहीं है। यारों! व्यक्ति का काम बोलता है। अविनाश भाई का काम ही चमचमा रहा है अब क्या प्रशस्ति पत्र और क्या मेडल....... सब उनके आगे बौने हो चुके हैं। भड़ास परिवार की दो वरिष्ठ संरक्षिकाएं मुनव्वर(सुल्ताना) आपा दुनिया की पहली नस्तालिक(उर्दू) महिला ब्लागर हैं और वहीं मनीषा(नारायण) दीदी दुनिया की पहली हिंदी लैंगिक विकलांग ब्लागर हैं हो सकता है कि ये भी रिकार्ड-सिकार्ड में दर्ज़ करने जैसी बात हो लेकिन भड़ास पर इसकी चर्चा तक नहीं करी जाती कि इनकी उपलब्धि को सम्मान का विषय बना कर तोते उड़ाए जाएं। जिसे इनकी उपलब्धियों की सराहना करनी हो वो खुद भाई अविनाश के ब्लागों या मनीषा दीदी और मुनव्वर आपा के ब्लाग पर जाकर पुच्च पुच्च कर आए।
जय जय भड़ास

4 comments:

Chhaya said...

Gyan ko kuchh chune hue logo ke diye gaye medal ki jaroorat nahi hoti :)

achcha, Manisha didi aajkal likh kiyu nahi rahi hain?

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा said...

छाया बहन,मेरे न लिखने के पीछे एक बड़ी छोटी सी बात थी कि मैं इतना सा लिख कर देखना चाहती थी कि क्या बदलाव हो रहे हैं। शेष मैं परिवार से तो जुड़ी ही हूं। अभी मैं एक पोस्ट लिखने जा रही थी तो देखा कि आपने कमेंट करा है कि मैं लिख नहीं रही। सच तो ये है बहन कि संघर्ष शब्दों में आते आते हल्का हो जाता है लेकिन फिर भी हम यही मार्ग अपनाएंगे क्योंकि दूसरे विकल्प उचित नहीं हैं
जय जय भड़ास

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

पुच पुच,

जय जय भड़ास

Chhaya said...

Manisha Didi..

main aapke blog ke 2-3 chakkar har hafte lagati hu, yeh dekhne ko ke kya aapne kuchh likha hai :)

sangharsh, sangharsh ke peechhe ka sahas, aur uss sahas to samete hue aapka hriyad...

main sure hu ke aur bhi bahot se bhai behen unko padhne ko aur janne ko utsuk rehte hai :)

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