जन गण मन की दुर्दशा !!!

जन गण मनके अधिनायक हे भारत भाग्य विधाता ।
तेरी दशा दुर्दशा पर अब नहीं कोई शरमाता । ।
गदारोंसे पटा पडा है देस का कोना कोना ।
हंसी और किलकारी गुम हुई बचा सिर्फ अब रोना ॥
उसका यहाँ सम्मान हो रहा जो करता अपमानित ।
वहीँ यहाँ पूजा जाता जो तुझ पर दाग लगता ॥
जन मन गण के अधिनायक हे भारत भाग्य विधाता ॥
तेरे घर में नया नया है होता रोज घोटाला ।
दूध नहीं मिलता गावों में मिलाती है मधुशाला ॥
कोई चीनी कोई यूरिया खा गया कोई चारा ।
भोला चेहरा लेकर फिर भी बने है सब बेचारा ॥
बेशर्मी की हद करके हर कोई है मुसकाता।
जन मन गण के अधिनायक हे भारत भाग्य विधाता ॥
सरस्वती पुत्रों का पग पग होता यहाँ अनादर ।
हंश मोर की जुबा बंद चीखें उल्लू चमगादर ॥
हर घर की मुंडेरों पर तक्षक नागों का डेरा ।
सोचो कैसा हमें मिल रहा है अब सुखद सबेरा ॥
क्रन्दन रुदन चीख चिल्लाहट भूले नहीं भुलाता ।
जन मन गण के अधिनायक हे भारत भाग्य विधाता ॥
जय हो भय हो मिलकर के अब फीलगुड करते हैं ।
अब चरखे का अर्थ बदल कर रत दिवस चरते हैं ॥
मोटा करना चाह रहें सब नोटों के बण्डल को ।
पाल रहे हैं पोस रहे हैं सब कसाब अफजल को ॥
जिसे देखिये लोकतंत्र को धकियाता मुकियाता ।
जन मन गण के अधिनायक हे भारत भाग्य विधाता ॥
सत्ता की गलियों में घुस गए गुंडेचोर मवाली ।
विधि विधान को निगल रहें हैं बाहुबली बलशाली ॥
काला अक्षर भैस बराबर मिलकर हुकुम चलायें ।
पढ़े लिखे लोगों को वो उंगली पर नाच नचायें ॥
।त्राहिमाम कर गिरा पडा हैं संविधान मिमियाता ॥
जन मन गण के अधिनायक हे भारत भाग्य विधाता ॥
बहुजन और सर्वजन की हालत पूछों जन जन से ।
किसको चिंता आज यहाँ हैं अब जन गण के मन से ॥
संसद और विधान सभा में होता ऐसा खेल ।
बड़े बड़े करतब वाले भी हुए मदारी फेल ॥
बनकर गाँधी फिर से कोई आकर राह दिखाता ।
जन मन गण के अधिनायक हे भारत भाग्य विधाता ॥


लेखक :- विजय विनीत
साभार :- भड़ास

4 comments:

Suman said...

nice

Mithilesh dubey said...

सच्चाई बयां कर दी आपने ।

डॉ महेश सिन्हा said...

बनकर गाँधी फिर से कोई आकर राह दिखाता ?

वन्दना said...

aaj ka sach bayan kiya hai aur aaj har dil mein yahi baat palti hai aur har koi chahta hai in bediyon se nikalana bas pahal koi nhi karna chahta............koshish karte rahiye kabhi to jagriti hogi.

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