दोहे और उक्तियाँ !!

बंजारानामा


क्या सख़्त मकां बनवाता है खंभ तेरे तन का है पोला

तू ऊंचे कोट उठाता है, वां गोर गढ़े ने मुंह खोला

क्या रैनी, ख़दक़, रंद बड़े, क्या बुर्ज, कंगूरा अनमोला

गढ़, कोट, रहकला, तोप, क़िला, क्या शीशा दारू और गोला

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा


हर आन नफ़े और टोटे में क्यों मरता फिरता है बन-बन

टुक ग़ाफ़िल दिल में सोच जरा है साथ लगा तेरे दुश्मन

क्या लौंडी, बांदी, दाई, दिदा क्या बन्दा, चेला नेक-चलन

क्या मस्जिद, मंदिर, ताल, कुआं क्या खेतीबाड़ी, फूल, चमन

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा

जब मर्ग फिराकर चाबुक को ये बैल बदन का हांकेगा

कोई ताज समेटेगा तेरा कोइ गौन सिए और टांकेगा

हो ढेर अकेला जंगल में तू ख़ाक लहद की फांकेगा

उस जंगल में फिर आह 'नज़ीर' इक तिनका आन न झांकेगा

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा

('नज़ीर' अकबराबादी)

1 comment:

Udan Tashtari said...

बहुत आभार 'नज़ीर' अकबराबादी जी की रचना प्रस्तुत करने का.

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