रुचिका प्रकरण के बाद विधि मंत्रालय से लेकर आम जनता तक पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री रठौड़ को कम सजा दिए जाने को लेकर एक बहस प्रारंभ हो गयी है सरकार बगैर सोचे समझे जनता की भावनाओ के दबाव में विधि में संशोधन कर रही है जिसका कोई औचित्य नहीं है। न्यायलयों में अभियोजन पक्ष की नाकामियों के लिए विधि को दोषी नहीं ठहराया नहीं जा सकता है। न्यायलयों की कार्यवाहियों में अभियोजन पक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है अभियोजन पक्ष सम्बंधित राज्य सरकार के प्रति उत्तरदायी होता है। व्यवहार में मजिस्टे्ट ट्रायल में सहायक अभियोजन अधिकारी सरकार के पक्ष की तरफ से अधिवक्ता होते हैं । जो दोनों पक्षों से लाभान्वित होते हैं पीड़ित पक्ष को उनको खुश करने के लिए कोई समझ नहीं होती है इसलिए अभियोजन पक्ष न्यायलयों में बचावपक्ष से मिलकर सही प्रक्रिया नहीं होने देता है। जब कोई अपराधिक वाद किसी भी थाने में दर्ज होता है तो कुछ अपराधों को छोड़ कर सभी अपराधों की विवेचना सब इंस्पेक्टर करता है जिसकी निगरानी के लिए डिप्टी एस.पी, एड़ीशनल एस.पी, एस.पी, एस.एस.पी, डी.आई.जी, आई.जी, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और पुलिस महानिदेशक होते हैं । इतने महत्त्वपूर्ण अधिकारीयों की देख-रेख में हो रही विवेचना का स्तर बहुत घटिया स्तर का होता है इन अधिकारीयों की मद्दद के लिए सहायक अभियोजन अधिकारी, अभियोजन अधिकारी, विशेष अभियोजन अधिकारी सहित एक विशेष कैड़र अभियोजन का होता है । वर्तमान में इनकी भूमिका का स्तर भी बहुत ही निकिष्ट कोटि का होता है. वर्तमान भारतीय समाज में फैले भ्रष्टाचार की गंगोत्री में स्नान करने के बाद सजा की दर क्या हो सकती है आप सोच सकते हैं । गंगा अगर मैली है तो स्नान के बाद चर्म रोग निश्चित रूप से होना है उसी तरह अभियोजन पक्ष भ्रष्टाचार की गंगोत्री में हर समय स्नान कर रहा है तो क्या स्तिथि होगी? इसलिए आवश्यक यह है की इस भ्रष्टाचार को अगर दूर कर दिया जाए। हजारों लाखों रुचिकाओं को न्यायलय में आने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी । विधि में संशोधन की आवश्यकता नहीं है जरूरत है उसको लागू करने वाली एजेंसियों में सुधार की जिसके लिए कोई सरकार तैयार नहीं है।
सुमन
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3 comments:
भाईसाहब न्यायपालिका में फैले महाभ्रष्टाचार का सबसे साफ़ नमूना जज आनंद सिंह का मामला है जिसके बारे में किसी को हवा तक नहीं है और १२४-ए लगा कर सभी भाईयों और पिताजी को पांच साल पेला गया। जजों और वकीलों में जो भ्रष्टाचरण है उसके बारे में भी कोई सफ़ल उपाय हो तो विमर्श करिये क्योंकि इस विषय पर तो कोई साधु संत मौलाना भगवान गुरू नहीं बोल रहा है हिम्मत ही नहीं होती। विधि का पालन कराने वाली एजेंसी ही क्या न तो जेल की जरूरत है न ही कचहरी की न पुलिस की क्योंकि इन सभी जगहों पर इंसान ही काम करते हैं और लालच इंसानी फ़ितरत है जिसे कुर्सी पर बैठ कर दूर नहीं करा जा सकता मात्र इस एहसास से कि अमुक न्याय की कुर्सी पर है...... कोई कम में बिक रहा है कोई ज्यादा और जो अब तक नहीं बिका उसे उचित मूल्य नहीं मिला है ऐसी जनधारणा है।
जय जय भड़ास
जज साहब आनंद सिंह के बारे में लोग चूं तक नहीं करते तब हमारी एक दिलेर बहन ने उन पर अपनी साप्ताहिक पत्रिका इंडिया न्यूज में स्टोरी करके दिखा दिया कि वाकई भड़ासियों में है वो ऊर्जा कि बदलाव लाने के लिये खुद को होम कर सकें
जय जय भड़ास
सुमन जी,
न्यायपालिका आम लोगों के लिए होती है मगर जिस तरस से न्यायपालिका का दुरूपयोग न्यायपालिका ने खुद किया है समाज हित में चिंतनीय है, आनद सिंह का मुद्दा न्यायपालिका के महा भ्रस्त होने कि गवाही देता है और अपने आपको सूचना के अधिकार से बाहर रखने कि बात कर न्याय पालिका के तमाम पैरोदार ही हमारे हिंद के गुनाहगार बन जाते हैं.
जय जय भड़ास
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