दहेज़ ह्त्या के दोषियों को उम्र कैद सिर्फ दुर्लभ मामलों में !!

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि दहेज हत्या के मामलों में दोषी व्यक्तियों को उम्र कैद की सजा सिर्फ दुर्लभ मामलों में ही मिलनी चाहिए। आईपीसी की धारा 304-बी के तहत दोषियों के लिए न्यूनतम सात साल से अधिकतम 10 साल तक की सजा का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह धारा दहेज हत्या की महज धारणा पर आधारित है और इसमें कम से कम सात साल से उम्र कैद तक सजा हो सकती है।

इस टिप्पणी के साथ ही जस्टिस पी सतशिवम की अगुवाई वाली बेंच ने दहेज हत्या के मामले में जीवी सिद्धमेश को मिली उम्र कैद की सजा घटाकर 10 साल कर दी। सेशन कोर्ट ने सिद्धमेश को उसकी पत्नी की हत्या का दोषी पाते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी।

बेंच ने हेमचंद वि. हरियाणा राज्य मामले में पहले आए फैसले को आधार बनाते हुए कहा कि धारा 304-बी के तहत प्रत्येक मामले में दोषी को उम्र कैद की सजा नहीं सुनाई जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि चूंकि सिद्धमेश युवा था, इसलिए उसे उम्र कैद के बजाय 10 साल कैद की सजा देना ज्यादा उचित था। सिद्धमेश ने निचली अदालत के उम्र कैद के फैसले को चुनौती दी थी जिसकी पुष्टि कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट में उपलब्ध कराए गए इलेक्ट्रॉनिक सबूत कागजी दस्तावेजों के मुकाबले ज्यादा सटीक और कठोर होने चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने यह बात शिवसेना के लोकसभा प्रत्याशी के चुनाव को चुनौती देने वाली एक याचिका को खारिज करते हुए दिए।

कोर्ट ने कहा कि अगर इस तरह के सबूतों की विश्वसनीयता नहीं जांची गई तो फैसला पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो जाएगा। ऐसे में याचिकाकर्ता को अपना आरोप ठीक उसी तरह से साबित करना होगा, जिस तरह से आपराधिक मामलों में आरोप साबित किए जाते हैं। कोर्ट का यह फैसला 2004 के आम चुनाव में महाराष्ट्र की सिन्नार सीट से खड़े शिवसेना प्रत्याशी माणिकराव शिवाजी कोकाटे के पक्ष में आया है, जिसके चुनाव को पराजित उम्मीदवार तुकाराम दिघोले ने चुनौती दी थी।

No comments:

Post a Comment