
जिस बात से भय लग रहा था कि कहीं हम जैसे लैंगिक विकलांगों के समाज में स्वीकारे जाने पर हमारी पहचान न विकृत हो जाए। आजकल जिस तरह से लैंगिक विकलांगता को एक तीसरा लिंग जताया जा रहा है ये सबसे खतरनाक साजिश है कुछ कुटिल दिमागों की जो कि अपनी विकृत और बीमार मानसिकता को इस तरह से सामने लाकर भोले बन रहे हैं। मुंबई में होने वाली इस तरह की सौंदर्य प्रतियोगिताएं क्या भला कर पा रही हैं ये सवाल कोई नहीं उठाने का साहस करता। स्त्री एवं पुरुष समलैंगिक संबंधों को अपनी सैक्स प्रायोरिटी(काम वरीयता) बता कर रुग्ण कामुकता के लोग अपने लिये समाज में सहानुभूति पैदा कर रहे हैं और साथ में एक जो धूर्तता कर रहे हैं वह है हम जैसे लैंगिक विकलांगों को कुछ पैसों का लालच दिखा

जय जय भड़ास
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