लैंगिक विकलांगों को सेक्स का खिलौना बनाने के बौद्धिक प्रयास




हमारे देश में समलैंगिकता को ज से उच्च न्यायालय ने अपराधबोध से मुक्त क्या कराया(भले ही उच्चतम न्यायालय में अभी भी इसके विरुद्ध अपील करी गयी है) उनकी चांदी हो गयी जो कि लैंगिक विकलांगो को सेक्स के खिलौने मानते हैं। मुंबई में लैंगिक विकलांगों के हितों के नाम पर काम करने वाले हम जैसे ही एक बंदे लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने काफ़ी नाम कमाया है। अस्तित्त्व नाम से एक गैर सरकारी संगठन भी चला रखा है। विदेश यात्राओं से लेकर टीवी कार्यक्रमों में दिखना इनका शगल है। जिस तरह हर समुदाय में होता है कि उनके ही स्वयंभू नेता उन्हीं का दोहन और शोषण करते हैं हमारे समुदाय में भी हो रहा है। शबनम मौसी नाम सब जानते हैं उन्होंने लैंगिक विकलांगता को राजनैतिक ताकत हासिल करने के लिये इस्तेमाल करा और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी प्रसिद्धि और पैसा कमाने के लिये इस्तेमाल कर रहे हैं।
अभी हाल ही में मुंबई में एक सौन्दर्य प्रतियोगिता का आयोजन करा गया जिसमें कि तमाम जगहों से लैंगिक विकलांगों को बुलाया गया और लाखों रुपये का खर्च कार्यक्रम के आयोजन में दर्शाया गया। जीनत अमान और सेलिना जेटली जैसे भ्रष्टबुद्धि फिल्म अभिनेत्रियो का भी इस कार्यक्रम में सहयोग रहा। इन लोगों ने बड़े बड़े व्याख्यान दे डाले कैमरे के सामने कि जैसे ये कोई क्रान्तिकारी पहल कर चुके हों।
इन सभी से सवाल कि क्या समाज की मुख्यधारा से लैंगि विकलांगों को जोड़ने का एक यही रास्ता है? सौन्दर्य स्पर्धाओं के बाद ये कहाँ खो जाते हैं सेलिना जेटली की तरह माडलिंग या फिल्मों में आकर सम्मानपूर्वक जीवन क्यों नहीं जी पाते? क्यों नहीं लैंगिक विकलांग बच्चों के लिये आजतक लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी या शबनम मौसी ने स्कूल की मांग करी या खुद ही खोल दिया? क्यों नहीं ये आगे आकर CRY जैसी संस्थाओं का सहयोग लेकर बच्चों को पढ़ाती लिखाती हैं? क्यों नहीं इन आयोजकों ने मुंबई में ट्रेन में भीख मांगने या कमाठीपुरा में सेक्स के भूखे दरिंदों की भूख मिटा कर अपने पेट की भूख मिटा कर दर्दनाक जीवन जीने वाले मासूम लैंगिक विकलांगों को इस आयोजन की सूचना तक दी?(ये कहेंगे कि हमने तो अखबारों में सूचना दी थी तो जरा ये कुटिल बताएं कि कितने हिजड़े अखबार पढ़्ने के लायक बनाए आजतक इन लोगों ने???)
आखिरी सवाल कि इन आयोजकों ने कैसे निर्धारित करा कि सारे प्रतिभागी लैंगिक विकलां(हिजड़े) ही हैं, क्या कोई डॉक्टरी सर्टिफ़िकेट था? यदि नहीं तो लाली पाउडर लगा कर तो शाहरुख खान से लेकर आमिर खान तक सभी भाग ले सकते थे। कोई उत्तर नहीं है किसी के पास ......... इस दिशा में कोई प्रया करा जाएगा कि लैंगिक विकलांगता के चिकित्सकीय पैमाने निर्धारित हों और इस आधार पर उन्हें शिक्षा से लेकर नौकरियों में वरीयता दी जाए, आरक्षण दिया जाए। ऐसे तो अंधे भी सुंदर होते हैं तो क्या उनके अंधेपन को लेकर उन्हें अलग सा जीव मान लिया जाए और उनकी सौन्दर्य स्पर्धाएं कराई जाएं? क्यों ये विचार इन मासूमों के दिमाग में ठूँसा जा रहा है कि ये सौन्दर्य प्रतियोगिता में ही अपना टैलेंट दिखा सकते हैं ? कभी इनकी कुश्ती या दौड़ की प्रतियोगिता रखकर देखा जाए, बस इतना बताना है कि हम जैसे मनुष्य जैसे दिखने वाले प्राणी सचमुच मनुष्य ही हैं तुम्हारे ही पेट से पैदा हुए, हमें एलियन या दूसरे ग्रह से आया न समझो। भड़ास परिवार का प्रयास जारी रहेगा सर्वशिक्षा के बारे में...........
जय जय भड़ास





(सभी चित्र हिन्दुस्तान टाइम्स,मुंबई से साभार)

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