क्राई के मुताबिक बजट 2010 में बच्चों को उचित आंवटन दिया जाए।
शिरीष खरे
शिरीष खरे
मुम्बई। क्राई के मुताबिक सरकार को बच्चों की गरीबी दूर करने के लिए और अधिक निवेश करने की जरूरत है। सरकारी तथ्यों के हवाले से 37.2% भारतीय गरीबी रेखा के नीचे हैं, जाहिर है कि देश में गरीबों की तादाद पहले से कहीं तेजी से बढ़ रही है। इससे यह भी जाहिर होता है कि पहले जितना सोचा जाता था, उससे कहीं ज्यादा बच्चे गरीबी और अभावों में जी रहे हैं।
ऐसे बच्चे जो गरीबी में पलते-बढ़ते हैं, वह अपने हर एक बुनियादी हक से भी अनजान रहते हैं। इस तबके के बच्चों में ही कुपोषण, असुरक्षित वातावरण, बीमारियां, अशिक्षा जैसी समस्याओं के पनपने की आशंकाएं रहती हैं। इसलिए इन वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए ही बजट का आंवटन किया जाना चाहिए।
क्राई की सीईओ पूजा मारवाह कहती हैं कि ``क्राई का 6700 वंचित समुदायों में काम करने का तजुर्बा यह साफ करता है कि देश में गरीबी का आंकलन वास्तविकता से बहुत कम किया गया है। देशभर में काम करने के दौरान हमने पाया है कि बच्चों के लिए पोषित भोजन का संकट बढ़ रहा है, उनके लिए स्कूल और आवास की स्थितियां भी बिगड़ रही हैं। फिर भी तकनीकी तौर पर बहुत सारे बच्चे ऐसे हैं जो वंचित होते हुए भी गरीबी रेखा के ऊपर हैं। जब हम गरीबी को ही वास्तविकता से कम आंक रहे हैं, तो सरकारी योजनाओं और बजट में खामियां तो होगी ही। ऐसे में हालात पहले से ज्यादा मुश्किल होते जा रहे हैं।´´
क्राई के साथ ऐसे कई समुदाय जुड़े हुए हैं जिन्होंने अपने आजीविका के साधन खोए हैं, जैसे कि जंगलों पर निर्भर रहने वाले आदिवासी, भूमिहीन, छोटे किसान वगैरह। ऐसे लोगों के लिए लोक कल्याण की योजनाएं जीने का आधार देती हैं। पूजा मारवाह के मुताबिक ``हम इस बात पर ध्यान खींचना चाहते हैं कि बच्चों की गरीबी सिर्फ उनका आज ही खराब नहीं करता, बल्कि ऐसे बच्चे बड़े होकर भी हाशिये पर ही रह जाते हैं। सरकार को चाहिए कि वह देश में बच्चों की संख्या के हिसाब से, सार्वजनिक सेवाओं जैसे प्राथमिक उपचार केन्द्र, आंगनबाड़ी, स्कूल, राशन की दुकानों के लिए और अधिक पैसा खर्च करे।´´
सरकार हर साल केन्द्रीय बजट में बच्चों की बढ़ती संख्या के मुकाबले उनके खर्च में बढ़ोतरी करने की बजाय कटौती करती जा रही है। (देखे टेबल 1- केन्द्रीय बजट में बच्चों की विशेष योजनाओं पर होने वाले खर्च का ब्यौरा।)
विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश जैसे यूएस, यूके, फ्रांस अपने राष्ट्रीय बजट का 6-7% हिस्सा शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं। जबकि अपने देश में 40 करोड़ बच्चों की शिक्षा पर राष्ट्रीय बजट का केवल 3% शिक्षा पर और 1% स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है। (देखे टेबल 2- शिक्षा और स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च का ब्यौरा : विकसित देशों के मुकाबले भारत की स्थिति।)
ऐसा देश जो कि आर्थिक विकास के रास्ते पर तेजी से बढ़ रहा है, वह अगर शिक्षा और स्वास्थ्य पर कम खर्च करेगा तो पिछड़ने लगेगा। क्राई और बच्चों के अधिकारों की वकालत करने वाली कई संस्थाओं की मांग है कि सरकार जीडीपी का १०% स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करे। बुनियादी अधिकारों के लिए सार्वजनिक खर्च में बढ़ोतरी करना न सिर्फ एक अच्छी नीति है, बल्कि यह अर्थव्यवस्था के लिए भी फायदेमन्द है। एक शिक्षित और स्वस्थ भारत ही तो अर्थव्यवस्था को मजबूती दे सकता है।
बॉक्स
- - - - भारत में बच्चों की स्थिति
• भारत में करीब 40% बस्तियों में प्राथमिक स्कूल नहीं हैं।
• भारत के आधे बच्चे प्राथमिक स्कूलों से दूर हैं।
• भारत के आधे बच्चे प्राथमिक स्कूलों से दूर हैं।
• भारत में 1.7 करोड़ बाल-मजदूर हैं।
• भारत में 5 साल से कम उम्र के 48% बच्चे सामान्य से कमजोर हैं।
• भारत के 77% लोग एक दिन में 20 रूपए से भी कम कमा पाते हैं।
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शिरीष खरे `चाईल्ड राईटस एण्ड यू´ के `संचार विभाग´ से जुड़े हैं।
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Shirish Khare
C/0- Child Rights and You
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Sane Guruji Marg
(Near Chinchpokli Station)
Mumbai-400011
www.crykedost.blogspot.com
I believe that every Indian child must be guaranteed equal rights to survival, protection, development and participation.
As a part of CRY, I dedicate myself to mobilising all sections of society to ensure justice for children.
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