खाद्य पदार्थों की महंगाई से जूझ रही जनता को आने वाले दिनों में रसोई गैस, मिट्टी तेल और पेट्रोल-डीजल के भी ऊंचे दाम चुकाने पड़ सकते हैं। पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य नीति तय करने के लिए गठित डा. किरीट पारिख समिति ने घरेलू रसोई गैस सिलेंडर में 100 रुपए और राशन में बिकने वाले मिट्टी तेल के दाम छह रुपए प्रति लीटर बढा़ने की सिफारिश की है। समिति ने इसके साथ ही पेट्रोल और डीजल के दाम सरकारी शिकंजे से मुक्त कर खुले बाजार पर छोड़ दिए जाने का भी सुझाव दिया है।
समिति की सिफारिशों को यदि स्वीकार कर लिया जाता है तो पेट्रोल के दाम में 4.72 रुपए और डीजल में 2.35 रुपए प्रति लीटर की वृद्धि हो जाएगी। घरेलू एलपीजी सिलेंडर 100 रुपए बढ़कर करीब 400 रुपए और मिट्टी तेल नौ रुपए से बढ़कर 15 रुपए लीटर पर पहुंच जाएगा। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री मुरली देवडा़ को बुधवार को यहां यह रिपोर्ट सौंपी गई। रिपोर्ट में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की सभी तेल कंपनियों को खुले बाजार की नीति के अनुरूप समान शर्तों वाले परिवेश में पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री करने का माहौल उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया है।
देवडा़ ने कहा कि रिपोर्ट पर पहले मंत्रालय में विचार किया जाएगा और उसके बाद इसे अगले एक पखवाडे़ में मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि आम बजट में भी रिपोर्ट की सिफारिशों को शामिल किया जा सकता है। देवडा ने स्वीकार किया कि समिति की रिपोर्ट को अमल में लाना कठिन कार्य है लेकिन सरकार के सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं है।
डा. पारिख ने रिपोर्ट सौंपने के बाद संवाददाताओं के साथ बातचीत में कहा कि उन्होंने पेट्रोलियम की व्यावहारिक और सतत मूल्य नीति पर विचार किया है। रिपोर्ट तैयार करते समय जहां एक तरफ सरकारी खजाने पर बढ़ते सब्सिडी बोझ पर ध्यान दिया गया है, वहीं दूसरी तरफ पेट्रोलियम के दाम बढ़ने से गरीब पर पड़ने वाले भार पर भी गौर किया गया है। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में आते उतार चढा़व से घरेलू अर्थव्यवस्था को सुरक्षा कवच दिया जाना इस नीति का वृहत उद्देश्य है।
पेट्रोल के दाम सरकारी शिकंजे से मुक्त करने की सिफारिश करते समय समिति ने दुपहिया वाहन चलाने वालों का भी ध्यान रखा है और समिति मानती है कि पेट्रोल के दाम को खुला छोड़ दिया जाना चाहिए। रिफाइनरी गेट और खुदरा स्तर पर इनके दाम नियंत्रण मुक्त कर दिए जाने चाहिए। डीजल के मामले में भी समिति का यही मानना है कि दाम नहीं बढा़ए जाने से सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता जाएगा। सरकारी खजाने पर यदि बोझ बढ़ता है तो उसकी भरपाई कहीं न कहीं से करनी होगी जिसका असर अंतत किसी न किसी रूप में जनता पर ही पडे़गा। डा. पारिख ने कहा कि कृषि क्षेत्र में डीजल का उपयोग होता है। दाम बढ़ने की सूरत में किसानों पर बोझ बढे़गा लेकिन इसकी भरपाई फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढा़कर की जा सकती है। उन्होंने कहा कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग एमएसपी तय करते समय 15 प्रतिशत हिस्सा ईंधन लागत का शामिल करता है।
समिति ने राशन में बिकने वाले मिट्टी तेल के दाम फिलहाल छह रुपए लीटर बढा़ने की सिफारिश की है। समिति का मानना है कि लंबे समय से किरासिन के दाम नहीं बढा़ए गए हैं जबकि इस दौरान शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति आय में काफी वृद्धि हुई है। डा. पारिख ने कहा कि डीजल और मिट्टी तेल के दाम में भारी फासला होने की वजह से मिलावट को भी बढा़वा मिलता है। उन्होंने कहा कि सस्ता मिट्टी तेल केवल गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली जनता को ही मिलना चाहिए। इसके लिए स्मार्ट कार्ड अथवा राष्ट्रीय पहचान पत्र को पहचान बनाया जाना चाहिए।
समिति की सिफारिशों को यदि स्वीकार कर लिया जाता है तो पेट्रोल के दाम में 4.72 रुपए और डीजल में 2.35 रुपए प्रति लीटर की वृद्धि हो जाएगी। घरेलू एलपीजी सिलेंडर 100 रुपए बढ़कर करीब 400 रुपए और मिट्टी तेल नौ रुपए से बढ़कर 15 रुपए लीटर पर पहुंच जाएगा। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री मुरली देवडा़ को बुधवार को यहां यह रिपोर्ट सौंपी गई। रिपोर्ट में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की सभी तेल कंपनियों को खुले बाजार की नीति के अनुरूप समान शर्तों वाले परिवेश में पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री करने का माहौल उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया है।
देवडा़ ने कहा कि रिपोर्ट पर पहले मंत्रालय में विचार किया जाएगा और उसके बाद इसे अगले एक पखवाडे़ में मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि आम बजट में भी रिपोर्ट की सिफारिशों को शामिल किया जा सकता है। देवडा ने स्वीकार किया कि समिति की रिपोर्ट को अमल में लाना कठिन कार्य है लेकिन सरकार के सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं है।
डा. पारिख ने रिपोर्ट सौंपने के बाद संवाददाताओं के साथ बातचीत में कहा कि उन्होंने पेट्रोलियम की व्यावहारिक और सतत मूल्य नीति पर विचार किया है। रिपोर्ट तैयार करते समय जहां एक तरफ सरकारी खजाने पर बढ़ते सब्सिडी बोझ पर ध्यान दिया गया है, वहीं दूसरी तरफ पेट्रोलियम के दाम बढ़ने से गरीब पर पड़ने वाले भार पर भी गौर किया गया है। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में आते उतार चढा़व से घरेलू अर्थव्यवस्था को सुरक्षा कवच दिया जाना इस नीति का वृहत उद्देश्य है।
पेट्रोल के दाम सरकारी शिकंजे से मुक्त करने की सिफारिश करते समय समिति ने दुपहिया वाहन चलाने वालों का भी ध्यान रखा है और समिति मानती है कि पेट्रोल के दाम को खुला छोड़ दिया जाना चाहिए। रिफाइनरी गेट और खुदरा स्तर पर इनके दाम नियंत्रण मुक्त कर दिए जाने चाहिए। डीजल के मामले में भी समिति का यही मानना है कि दाम नहीं बढा़ए जाने से सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता जाएगा। सरकारी खजाने पर यदि बोझ बढ़ता है तो उसकी भरपाई कहीं न कहीं से करनी होगी जिसका असर अंतत किसी न किसी रूप में जनता पर ही पडे़गा। डा. पारिख ने कहा कि कृषि क्षेत्र में डीजल का उपयोग होता है। दाम बढ़ने की सूरत में किसानों पर बोझ बढे़गा लेकिन इसकी भरपाई फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढा़कर की जा सकती है। उन्होंने कहा कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग एमएसपी तय करते समय 15 प्रतिशत हिस्सा ईंधन लागत का शामिल करता है।
समिति ने राशन में बिकने वाले मिट्टी तेल के दाम फिलहाल छह रुपए लीटर बढा़ने की सिफारिश की है। समिति का मानना है कि लंबे समय से किरासिन के दाम नहीं बढा़ए गए हैं जबकि इस दौरान शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति आय में काफी वृद्धि हुई है। डा. पारिख ने कहा कि डीजल और मिट्टी तेल के दाम में भारी फासला होने की वजह से मिलावट को भी बढा़वा मिलता है। उन्होंने कहा कि सस्ता मिट्टी तेल केवल गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली जनता को ही मिलना चाहिए। इसके लिए स्मार्ट कार्ड अथवा राष्ट्रीय पहचान पत्र को पहचान बनाया जाना चाहिए।
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