एक महिला पत्रकार की जुबानी, पत्रकारिता का विध्वंश चरित्र !

ये एक हकीकत है जिसे मेरी महिला मित्र ने कहानी का रूप दिया है, नाम बदल दिए गए हैं मगर हकीकत को ज्यों का त्यों आपके सामने रखा गया है. कहानी के किरदार पत्रकार महोदय को मैं भी जनता हूँ और एक और बार ऎसी कहानी के करण इन से मुखातिब भी हो चुका हूँ.
मैं चाहता था की इस कहानी के जरिये व्यथा को कहने वाली मेरी मित्र सब कुछ सच सच लिखे और लोगों को बाकायदा उनके नाम के साथ संबोधित करे मगर मैं मित्र के आग्रह के करण कहानी को उनके ही शब्दों में रख रहा हूँ.


अधूरी  दास्तान  
  
सुबह का समय था मान्या अपने ऑफिस में बैठी अपने कंप्यूटर में कुछ मेल पढ़ रही थी और उनके उत्तर दे रही थी कि अचानक  उसने एक फ्रेंड रिक्वेस्ट देखी उसने सोचा यह कौन है चलो उसका प्रोफाइल देखते है मन के विचार के अनुसार वह उस प्रोफाइल पर गई और पढने लगी.......
 
नाम भावेश.................
पता बनारस .............. 
विचारो से एक सुलझा इन्सान.....................

उसके  प्रोफाइल को पढ़कर  मान्या  को लगा चलो एक अच्छा और सुलझा दोस्त और मिल गया. उसने  भावेश की दोस्ती के निमंत्रण को सह्दय स्वीकार कर लिया और अपने  कार्यो  में लग  गई. दुसरे दिन सुबह जब मान्या ने अपना कंप्यूटर खोला तो भावेश को ऑनलाइन पाया और उसने मान्या को सुबह का नमस्ते भी भेजा। मान्या ने भी उन्हें सादगी से जवाब दिया और रोजमर्रा  के कामों में लग गई. 
ऐसा कई दिनों तक चलता रहा। एक दिन सुबह मान्या अपनी एक मित्र से बात कर रही थी  तो भावेश ने उसे सुबह का नमस्ते किया उसने उन्हें जवाब दिया और उनके प्रश्नों का उत्तर  देने  लगी. भावेश मान्या से कहता है,  खुद  की  तलाश  हमेशा  कठिन  होती है और जो एक बार खुद को खो दे उसे ढूढना  मुश्किल  हो  जाता  है।
भावेश कहता  है हम  भावेश  हैं  आपका  नाम क्या है ? मान्या सिंह. भावेश..भावेश कुमार
मान्या...कहा से
भावेश-बनारस से हूँ यहाँ की सुबह बेहद सुन्दर होती है. रेत के बंजरों पर बादलों की गडगडाहट हमेशा  अच्छी  लगती है.
मान्या-हमने  सुना  है गगा  का  किनारा  और संतो  की बानी शंखो  की धुन...
भावेश- आप  कहा से...
हम लखनऊ से है "सिटी ऑफ़ नवाब"
भावेश- जानकर  अच्छा  लगा 
मैं भी कभी कभी वहा आता  हूँ  और  मुझे  लखनऊ  कभी  अजनबी  जैसा   नहीं  लगा ।
मान्या- यह जान  कर ख़ुशी  हुई कि  आप को हमारा शहर अच्छा लगता है।
भावेश- कूछ  अलग  सा  है   आप  क्या  करती   है.
मान्या- कुछ नहीं एक जॉब   की तलाश कर रही हूँ.
अच्छा अब  हम चलते है आप से फिर बात होगी !  खुश रहिए और अपना ख्याल  रखियेगा.
भावेश मान्या को बड़ा अजीब उत्तर देता है। 
भावेश- मुझे  तो  ख़ुशी  होनी  ही  थी दोस्ती  का  हाँथ  जो  पहले  हमने  बढाया  था ।
दुसरे  दिन सुबह के समय मान्या ऑनलाइन होती है और भावेश को अच्छी सुबह की बधाई देती है पर भावेश उसे कहता है कि मेरे  सपने  पूरे   नहीं  होते  जब  कोई  कहता  है  जा  तेरे  सपने  पूरे   हों तो  हंसी  आती  है। मान्या कहती है मेंरे  सपने पुरे हों, या न हो पर मैं  कोशिश  जरुर  करती  हूं और आप इतनी निराशावादी बातें क्यों करते है। 
भावेश -  नहीं  निराशावादी मैं  तो  हूँ  ही  नहीं  मै पर बात  सपनो  के  सच  होने की  और   न  होने  की  है। शायद  इसलिये   सपने नहीं देखता। कल आप बात करते.करते अचानक चली गईं , तो   मैंने   आपकी  प्रोफाइल  पढ़ी कुछ  अलग  हटकर था।

 मान्या ने उत्तर दिया हम ऐसे ही है

और इस तरह उनकी बातों  का सिलसिला चलने लगा , पर भावेश के दिल में क्या चल रहा था  , वो इस सच से अजान थी !
चार  पाच दिन के बाद भावेश ने मान्या  का फ़ोन  नंबर मागा  । पहले तो  मान्या मना  कर देती है ! पर बाद में भावेश की बातों पर विश्वाश कर के अपना नंबर दे देती है ! उसी दिन भावेश ने मान्या से कहा कि वो उससे बहुत प्यार करता है , पर मान्या ने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उस वक्त  भावेश  उसे कहता है मान्या तुम्हे हमसे प्यार करना ही होगा।

यह बात मान्या को बड़ी  अजीब सी लगती है। मान्या को लगा कि देखो यह अपनी बात के पीछे ही पड़ गया है जबकि हम इन्हें अच्छी तरह से जानते भी नहीं हैं और यह हम से कहते हैं यह  हमसे प्यार करते है ! क्या ऐसे भी कोई किसी को प्यार करता है पर भावेश का पागलपन  बढता ही  जा रहा था तो मान्या को उनसे डर सा लगने लगा !   तब मान्या भावेश से कहती है कि  अगर वो उसे प्यार करता  है तो उससे विवाह कर ले  ..........पर भावेश  उससे विवाह करने से मना कर देता है और अपने परिवार की बहुत सी समस्या बताता है ....... उसकी बहन का विवाह आजीवन नहीं हो सकता तो वो कैसे विवाह कर सकता है और उस की एक विधवा भाभी  और उसके बच्चो की  उसे हे देख भाल करनी है..........और उनकी माँ चाहती  है की वो अपनी भाभी से शादी  करे  ..........तो  मान्या कहती है कि अगर  ऐसा  है तो उन्हें उन्ही से प्यार का प्रस्ताव रखना चाहिए न की उससे पर भावेश कहता है वो मान्या से ही प्यार करता है  किसी और से शादी नहीं कर सकता  तो  मान्या कहती  है   कि   उससे विवाह कर लेगा तो दोनों एक साथ हर समस्या का सामना करेगें  पर भावेश  नहीं मानता  है और कहता है वो आजीवन बिना विवाह  के ही  रहेगा, पता नहीं क्यों मान्या उसकी बातों पर भरोसा कर लेती है और भावेश से कहती है की वो दोस्त की तरह से आजीवन रह सकते है पर भावेश नहीं मानता है.

एक दिन भावेश मान्या  के शहर उससे मिलने आता है  उस दिन मान्या  बहुत खुश होती है क्योंकि जीवन में पहली  बार किसी  अपने से मिलने जा रही  होती है पर जब वो भावेश  से मिलती है तो उसकी आत्मा कहती है कि कहीं कुछ गलत है वो भावेश को सब से मिलाती है पर भावेश उसे किसी  से पहचान कराने से भी डरता है  और बस वह उससे कुछ ऐसे डिमांड करता है जो कोई भी लड़की पुरे नहीं कर सकती. मान्या उसकी इच्छा पुरी करने से मना कर देती है और उसे बहुत समझाती है कि वो एक अच्छा दोस्त बन सकती है पर भावेश का बर्ताव बड़ा अजीब सा होता है वो अधिकतर अपनी भाभी से और उनकी बच्चों से ऐसे  बात करता जैसे अपनी पत्नी  और अपने बच्चो  से बात कर रहा हो. यह बात मान्या  के  दिल में घर कर जाटी  है कि ये कैसा  रिश्ता है उसका उस औरत से जो उसके  घर में रहती है. अजीब सा लग रहा था मान्या को कि क्या यह वही है जो उससे रो रो कर कहता  कि वो उससे प्यार करता है यह वो नहीं कोई अजनबी सा इन्सान लग रहा है पर वो तो उससे प्यार करने लगी थी उसने तो इस इन्सान के साथ अपना पूरा जीवन बीतने  के सपनें देखे थे पर उसके पास भावेश पर विश्वास  करने के अलावा कोई चारा भी नहीं  था. क्यूंकि वो दिल से इस इन्सान से जुड़ गई थी

भावेश चला जाता है और मान्या उसे चाह कर भी नहीं रोक पाती धीरे धीरे समय का चक्र आगे बढता है मान्या का विश्वास भावेश से हटने लगता है भावेश की रोज नयी महिला मित्रो की संख्या बढने लगती है  वो मान्या को भूलने लगता है  वो उससे बात नहीं करता उसके फोन का भी जवाब नहीं देता मान्या दिन पे दिन मरती जा रही थी और वो अपने लिए कुछ नहीं कर पा रही थी  आज उसे वो बातें बेमानी लगती है प्यार उससे करो जो तुम से करे यही बात पर विश्वास कर के उसने भावेश से प्यार किया था ! एक दिन  मान्या भावेश को फोन करती है और बहुत सारी बातें करती है इसी बीच भावेश उस औरत का नाम लेता  है जिस को वो अपनी भाभी बता रहा था ! तब  मान्या भावेश से पूछती है कि तुम्हे आज सच बताना  होगा कि क्या रिश्ता है तुम्हारा इस औरत से  तब भावेश  कहता है  वो मेरे पत्नी  है और मैं शादीशुदा  हूँ  और दो बचो का पिता हूँ और अपने  परिवार से प्यार करता हूँ !  वो  अपनी  पत्नी को किसी   लड़की के  लिये  नहीं छोड़ सकता हैं !   इसलिए वो उसकी जिंदगी से जा रहा है! यह सुनकर मान्या के  पैरों  के  नीचे  से जमीन खिसक जाती है उसकी आखों के सामने  अँधेरा  सा छा जाता हैं उसे कुछ भी सुनाई नहीं देता  और कुछ  भी दिखाई नहीं देता. मानो किसी ने उसके  सारे सपने तोड़ दिए  हो   ! वह भावेश  से चीख चीख कर पूछती है अगर वो शादी शुदा था तो उसने उससे प्यार का झूठा   नाटक   क्यों किया उसके जज्बातों से क्यों खेला पर भावेश के पास मान्या के एक भी प्रश्नों का उतर नहीं था...........क्यों की उस इन्सान का झूठ सामने आ चूका था और एक लड़की के विश्वास से एक कमीना इन्सान खेल चूका था और वो लाचार थी क्यों कि वो एक ऊचे  कद का इन्सान था....... मान्या पूरी तरह से टूट चुकी थी,  उसके जीवन के सारे रास्ते खत्म हो चुके थे ।

ये महाशय ब्लोगर हैं, अपने आप को पत्रकार भी कहते हैं पूरी रात अंतरजाल पर ऎसी गतिविधियों में लिप्त रहते हैं और लेखन के नाम पर संवेदनशील मुद्दे ही ब्लॉग पर उकेरते हैं ( क्या क्षद्मता है )

सोचनीय हूँ... 

9 comments:

वन्दना said...

rajneesh ji

jab aap jante hain aise mahanubhav ko tosabke aage useexpose kyun nhi karte kal ko wo isi tarah aur bhi na jaane kitni ladkiyon ki zindagi barbaad karega.

Suman said...

khulkar likhay.nice

हरि शर्मा said...

दोस्त आपका शीर्षक ठीक नही है अगर किसी खास पत्रकार को नन्हा करना है तो उसका नाम लिखे नही तो इसे पत्रकार से नही जोडे. आपने अन्तरजाल की दोस्ती के छ; से परिचय कराया है वो ठीक है लेकिन यहा निरी भावुकता का दोष आपकी मित्र का भी है पत्रकार होते हुए भी इतनी भावुक होन्गी तो कैसे काम चलेगा.
अन्तरजाम पर भी दोस्ती के वैसे ही छल है जैसे आम जीवन मे.

'अदा' said...

इस पूरे प्रकरण का अवचित्य मुझे समझ नहीं आया...
आपकी महिला मित्र परले दर्जे की बेवकूफ हैं....जब एक इंसान शुरू से ही उल्लू बना रहा किसी को और दूसरा इंसान ख़ुशी-ख़ुशी बन रहा है तो फिर किस बात का रोना...?
ये सरासर अहमकपना है..आप अपनी महिला दोस्त से कहें....ऐसी बेवकूफी से बाहर आयें....यह प्यार नहीं मूर्खता है....और ये रातों रात नहीं होता है ..अगर होता है तो वो प्यार नहीं है....
उस गधे का नाम बताइए आप ..इस तरह उसका नाम छुपाने का मतलब क्या है.....??
हम सबको पूरा अधिकार है ऐसे सिरफिरे, धोखेबाज का नाम जानने का....उसने एक धोखेबाजी ज़रूर की है...शादी-शुदा होते हुए खुद को कुंवारा बताने की
एक बात और बता दूँ आपको..स्त्रियों की छठी इन्द्रिय आम तौर पर बहुत सजग होती है...एक पढ़ी लिखी पत्रकार ....जो की बिना बात की तह तक गए कोई फैसला नहीं करती..कैसे धोखा खा गयी....और कुछ बिगड़ा ही कहाँ है....उस इंसान से प्यार किया...??? अजी लानत है ऐसे प्यार को....उनसे कहिये....सर उठा कर ...उस प्यार को किसी गतलखाता में डालें...और शान से अपनी ज़िन्दगी जियें....कुछ भी बुरा नहीं हुआ है...ज़िन्दगी ऐसे जाहिल आदमी के लिए बर्बाद ??
दिमाग खराब है क्या ..!!
शुभकामना ...

वाणी गीत said...

आँख होते हुए कोई कुँए में गिरे ...कुसूर किसका ...एक पढ़ी लिखी पत्रकार से इतनी बेवकूफी की आशा नहीं की थी ....

boletobindas said...

आज के जमाने में परले सिरे की बेवकूफी है. जब शुरु में ही बात समझ में आ गई थी तो प्यार करने की जरुरत क्या थी....

manu shukla said...

आप सभी का कहना टीक है अगर उसमे हिम्मत नहीं होती तो इस घटना को वो कहानी की सकल में नहीं लिखती ! यह बात आप की सामने नहीं लती यह किसी प्यार की कहानी नहीं यह एक मुदा है की कोई इन्सान अपनी पत्नी को हे विधवा बाता दे और दुसरो से झूटी सवादना मागे सच सामने आने पर उसे अपनी गलती पर कोई पछतावा ही ना हो !

ajit gupta said...

मैं अदाजी की बात से सहमत हूँ। एक बार प्रसिद्ध ठग नटवर लाल ने कहा था कि जब तक दुनिया में लालच है, हम जैसे ठग भी रहेंगे।

यशवन्त मेहता "यश" said...

हरि शर्मा जी और अदा जी के कमेंट्स से पूरी तरह सहमत

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