सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि मुस्लिम दूसरी शादी नहीं कर सकते, ये शीर्षक बना कर मीडिया ने खबर बेचना शुरू कर दिया; मच गया हो-हल्ला कि क्या कुछ नया सा हो गया है इस देश में। कोई भी सरकारी कर्मचारी(ध्यान दीजिये कि "सरकारी कर्मचारी"......) एक पत्नी के जीवित रहते उससे विवाह विच्छेद हुए बिना दूसरी शादी नहीं कर सकता, ये नियम कोई नया नहीं है इसमें मुस्लिमों को कोई छूट नहीं है कि वे शरीयत के कंधे पर सवार हो कर सरकारी पगार की दम पर चार-चार बीवियों के साथ बिस्तर तोड़ सकें। ये नियम सिर्फ़ सरकारी कर्मचारियों पर ही क्यों लागू होता है क्या किसी को इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं होता? आखिर क्यों ऐसा नहीं होता कि सुप्रीम कोर्ट मुसलमानों को इस देश में समान नागरिकता को बोध कराने के लिये इस बात को सभी पर लागू करने के लिये इस विषमता को समाप्त करता कि आस्था और धार्मिक नियम निहायत ही निजी बात है उसे राष्ट्रीय कानून पर थोपना उचित नहीं है और न ही सबको ये लालीपाप पकड़ाना उचित है कि भाई करो जो तुम अपनी आस्था से सही मानते हो। इस बात का सीधा दुरुपयोग कई बार हमारे देश ने देखा है चाहे वह फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र-हेमामालिनी का प्रकरण हो या फिर फ़िज़ा-चांदमुहम्मद की कहानी। क्यों नहीं सुप्रीम कोर्ट खुद इस विषय में कोई कदम खुद उठाता या फिर वह अपाहिज है कि उसे किसी हाईकोर्ट से विवादित मामले की बैसाखी जब तक न दी जाए वह हिलने को तैयार ही नहीं होता? यदि ये बात आम नागरिकों के लिये भी लागू कर दी जाती तो सरकार और जनता के बीच जो दरार सुप्रीम कोर्ट ने भरने नहीं दी है वह मुस्लिम समाज की महिलाओं के सामाजिक पक्ष को सशक्त करने की दिशा में उपयोगी हो पाती। सुप्रीम कोर्ट और सरकार( वह सरकार जो कहा जाता है कि जनता बनाती है) नहीं चाहते कि इस हिन्दू-मुसलमान-इसाई-सिख-पारसी आदि के भेद को मिटा कर समान नागरिकता की बात करी जाए।
जय जय भड़ास
3 comments:
आपकी इस बात पर तो किसी ने nice तक नहीं लिखा आप खुद सोच लीजिये कि कितनी बेहूदा बात लिखी है आपने कि भाई सुमन तक ने इस पर कमेंट नहीं करा
जय जय भड़ास
गुरुवर आपने खुद लिख दिया, नि:संदेह सुप्रीम कोर्ट अपाहिज ही नहीं बल्की कानून के झूठे पुलिंदों को आम नागरिकों पर थोपने कि दुकानदारी भी है.
जय जय भड़ास
सेकुलरों के पेट में दर्द शुरू गया गया है इनकी @$^*^$#$%%$#%#$@#
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