यु जी सी द्बारा उच्च शिक्षा में सुधार के प्रयास

यु जी सी ने सुझाव दिया है की यूनिवर्सिटियां कुछ ऐसा उपाय भी करें जिसमें कोई छात्र अपने कॉलिज में पढ़ाई करे, मगर उसी पाठ्यक्रम का कोई खास पर्चा यदि वह किसी विशेष संस्थान से करना चाहे और उसकी व्यवस्था कर ले, तो उसे ऐसा करने की छूट हो। सैद्धांतिक रूप से यूजीसी के ये प्रस्ताव अच्छे हैं, पर फिलहाल इनका विरोध भी हो रहा है। अध्यापकों को यह शिकायत है कि यूजीसी बिना इन पर पर्याप्त चर्चा कराए और बगैर ब्लू प्रिंट बनाए ही इसे थोपने की कोशिश कर रही है। सभी यूनिवर्सिटियों में इसके लिए ऐसा ढांचा नहीं है कि वहां साल में दो बार परीक्षाएं हो सकें। इसी तरह जिस आंतरिक मूल्यांकन का प्रतिशत बढ़ाने की सिफारिश यूजीसी कर रही है, पर वह छात्रों पर उलटी भी पड़ सकती है। टीचर किसी छात्र से अपनी कोई नाराजगी इसके जरिए निकाल सकते हैं। इसलिए टीचरों द्वारा किए जाने वाले आंतरिक मूल्यांकन की निगरानी का भी तो उपाय करना होगा। लीक से हटने की यूजीसी की इच्छा का स्वागत है, पर यह खयाल रखना होगा कि जल्दबाजी से काम बिगड़ नहीं जाए। यूनिवर्सिटियों को तैयारी के लिए पर्याप्त वक्त मिलना चाहिए।
वैसे भी आतंरिक मूल्यांकन में यह बात सामने आई है की टीचर अपने पसंदीदा छात्रों को ज्यादा नंबर देते है और कुछ तो इतने लोभी किस्म के होते है की पैसा भी खाते है । इसी तरह से कुछ छात्रों से अपने घर का काम भी कराते है । आतंरिक मूल्यांकन से ऐसे प्रोफेसरों की चांदी हो जायेगी ।
कुछ अन्य सुझाव है ...यूजीसी ने शैक्षिक व प्रशासनिक सुधारों के लिए गठित ए. गणनम समिति की सिफारिशों के आधार पर सभी यूनिवर्सिटियों में ग्रेडिंग और सेमिस्टर सिस्टम लागू कराने की पहल की है। उच्च शिक्षा के ग्लोबल मानकों के मद्देनजर हमारी यूनिवर्सिटियों को अंकों और डिविजन की पारंपरिक प्रणाली से बाहर निकलना चाहिए।यह सुझाव काफी अच्छा है चर्चा और व्यापक व्यवस्था कर इसे लागू किया जा सकता है ।
आज बहुत बड़ी तादाद में हमारे छात्र उच्च और प्रफेशनल डिग्रियों व कोर्सों के लिए विदेशों का रुख कर रहे हैं। जब उनकी डिग्रियां और अंक वहां के सेमिस्टर या ग्रेडिंग सिस्टम से मेल नहीं खाते, तो दाखिले में दिक्कत होती है। अगर हमारा सिस्टम उनकी तरह होगा तो हमारे छात्रों को ऐसी परेशानी नहीं होगी। हमारी भी संभावना बढेगी विदेशों से और ज्यादा छात्र भारतीय यूनिवर्सिटियों में दाखिला लेगें क्योंकि यहां ऐसी शिक्षा उन्हें बहुत सस्ती पड़ेगी। ग्रेडिंग प्रणाली अंक प्रदान करने के सिस्टम से ज्यादा उपयोगी है, इसीलिए यहां सीबीएसई की परीक्षाओं में भी उसे अपनाया जा रहा है। पढ़ाई के लिहाज से साल में सिर्फ एक बार परीक्षा लेने से स्टूडंट पर सारे कोर्स की तैयारी एक साथ करने का दबाव बनता है। इसकी जगह सेमिस्टर और निरंतर मूल्यांकन करने वाला पैटर्न उन्हें ज्यादा सीखने के अवसर देता है और तनाव मुक्त रखता है।इस प्रकार यह प्रणाली व्यक्तित्व के विकास में भी मददगार साबित हो सकती है ।

2 comments:

मनोज द्विवेदी said...

Bhaisahab ummid par hi duniya kayam hai aur dua kijiye ki aisa hi kuchh ho bhi jaye...prerak prasang uthane ke liye badhai ho..

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मार्कण्डेय भाई बढिया लिखा है लेकिन एक बात देखिये कि देश आजाद हुए इतने बरस बीत जाने पर अब तक शिक्षा नीति ही स्पष्ट तौर पर रूप नहीं ले सकी तो फिर हम आदर्श छात्रों की क्या आशा कर सकते हैं और जिस समाज में आदर्श छात्र नहीं उस समाज का क्या होगा आप देख तो रहे ही हैं...
जय जय भड़ास

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