भारतीय लोकसभा चुनाव एक ऐसा ही महायग्य है जिसमें सभी शरीक होते हैं और परिणाम की ओर आशा से देखते हैं कि आने वाला नेतृत्व देशहित में बदलाव लेकर आएगा।
एक बार फ़िर से चुनावी महासमर सामने हैं, देश इस समर में शामिल होते हुए भी राजनैतिक लिप्सा के कारण अपने को अलग थक कर रहा है ओर बीन नेताओं की बज रही है।
मुद्दाओं की बाढ़ है, घोषणाओं से सरोबार है।
दाल चावल से लेकर रोजगार तक की बीन है
लोग जानते हैं,
परिणाम वही डफली ओर ढाक के पात हैं।
चुनाव भी होगा सरकार भी बनेगी,
आई टी भी चलेगा ओर विकास भी बजेगी।
ना होगा तो आम जन का भला क्यूँकी,
आम तो निचोड़ने के लिए होते हैं,
चुनाव ख़तम, सरकार बनी,
आम के निचोड़ने पर ठनी।
दाल चावल से लेकर रोजगार तक की बीन है
लोग जानते हैं,
परिणाम वही डफली ओर ढाक के पात हैं।
चुनाव भी होगा सरकार भी बनेगी,
आई टी भी चलेगा ओर विकास भी बजेगी।
ना होगा तो आम जन का भला क्यूँकी,
आम तो निचोड़ने के लिए होते हैं,
चुनाव ख़तम, सरकार बनी,
आम के निचोड़ने पर ठनी।
ये तस्वीरें पिछले सरकार के रेलमंत्री के रेलविकास के दावे की पोल खोल रही है, विकास तो हुआ भाडा भी नही बढ़ा आम आदमी आम ही तो है, झुनझुने से खुश हो जाता है।
होली के अगले दिन ही मुझे घर से विदा होना था बस स्टैंड पहुंचा तो विकास पुरूष नीतिश जी के विकास ने ट्रांसपोर्ट का विकास भी दिखाया, निजी बस की दादागिरी ओर परिवहन ठप्प। जहाँ अन्य राज्यों में सरकारी ट्रांसपोर्ट सरकार की रीढ़ है बिहार में तो रीढ़ ही नही है।
बहरहाल आना तो था ही टिकट था पटना से सो स्टशन पहुँचा की कोई ट्रेन मिले तो आगे सफर करुँ। ट्रेन के आने में घंटे भर था सो पुराने स्कूल ओर कोलेज के दिनों को याद करते हुए स्टेशन पर ही घुमने लगा, रात के बारह बजे होते हुए भी पुराने चाय ओर सिगरेट के दूकान वाले मिल ही गए ओर बातों का सिलसिला भी चल पड़ा। कुछ देर बाद मैंने कहा की यार जरा मैं स्टेशन से घूम आऊं ओर जब नजारा लिया तो ये तस्वीरें उस नज़ारे की गवाह....आप भी देखिये ओर सोचिये विकास की दुहाई या सच्चाई। संग ही अपने मधुबनी स्टेशन के दर्शन भी।
एक स्मारक जिसपर ना बैठने का निर्देश, स्टेशन से ढाई फुट नीचे कोई कैसे बैठे। स्टेशन बदला स्मारक जस का तस्।
नया प्रसाधन ताला बंद, रेल मंत्री आयें तभी ये खुलेगा।
अर्र्र्र्र्रर ये कैसा सीन है भैया, स्टेशन है या छावनी? क्या आपने कभी ऐसा सीन देखा है ?
स्टेशन के विश्रामालय से लेकर बाहर तक पुलिस का स्टेशन पर कब्जा, सुविधा तो है मगर आम जन से कोसो दूर!
स्टेशन के विश्रामालय से लेकर बाहर तक पुलिस का स्टेशन पर कब्जा, सुविधा तो है मगर आम जन से कोसो दूर!
सालता रहा ओर याद करता रहा, दावे ओर घोषणाएं, लम्बी फेरहिस्त की हम कहाँ से कहाँ पहुंचे मगर जब मैं इन सुविधा का जायजा विकास का नजारा लेने पहुंचा तो याद आ गया वो पुराना दिन जब छोटी लाइन हुआ करती थी मगर सुविधा थी । राज्य के परिवहन की बस चलती थी ओर बंदी नही होता था।
क्या लालू क्या नीतिश सभी राजनेता ने जाति को आधार बना कर सत्ता का सुख लिया, मिथिलांचल ने जहाँ लालू को सर आंखों पर बिठाया वहीँ नीतिश को भी ताज दिया ओर सच्चाई याने की..........
वोट लो, जनता को लूट लो।
राज करो, जनता का व्यापार करो।
जागो भारत जागो।
अनकही का यक्षप्रश्न जारी है।
13 comments:
अरे भाई
मधुबनी है क्या चीज़
ये न तो दिल्ही है
ना ही मुंबई
न ही मेरा महाराष्ट्र
ये बिहार है
सुधारे को वक़त लगे गा
अपने परदेश का विकास अपने लोगो से ही होता है
अपनों को बोलो अपने परदेश के विकास में सहयोग किया करे
राज ठाकरे के मुंबई का नहीं
bharat kab jaaga hai jo aaj jagane ki aap koshish kar rahe hain.
yahan to andher nagri chaupat raja wali baat hai
जितना सुन्दर लिखा है उतना ही सुन्दर पोस्ट का प्रस्तुतीकरण किया है. सहेजनी जैसी. बहुत खूब. जारी रहें.
चित्र बहुत कुछ कह रहे हैं लेकिन सुनने वाला कहाँ है? पश्चिम की नकल करते ही हैं. क्यो न हम भी अपने देश कम्युनिटी सर्विस शुरु करें....जो ऐसा करे वह रोटी कपड़ा और मकान पाए ..
ab kya kahein jab aapne saari batein bol di, tasveeron ne wakayi aankhein khol di...Jai Ho...!!
ab ye ankahi kahan rahi aapne to saaree pol khol di vese ye apka halla bol abhiyan bahuy badia hai tsveeren bhi sara hal biyan kar rahi hain is abhiyan ke liye shubhkamnayen
आप निराश न हों, मैंने तो हावड़ा स्टेशन पर भी यही हाल देखा है.
लालू का फतांसी विकास सब जगह दीखता है.
मुंबई के सभी स्टेशन का ये ही हाल है.
ना सुरक्षा न व्यवस्था.
सजीव चित्रण,
वैसे कमोबेश ये दृश्य दरभंगा से दिल्ली तक सभी जगह दिखाई दे जाता है.
सच को सामने लेन के लिए आभार.
देश के कमोबेश हर स्टेशन का यही हाल है ,किसी को क्या फर्क पड़ता है बस जनता बेहाल है.इतनी अच्छी पोस्ट के लिए साधुवाद ..........
hello rajni jee, ye hemant kon hai usko boliye ki uske baap kaa mumbai hai kiya aur kebal mubai hi sahi hai baki pardesh madhubai se bhi bekaar hai.
भैय्या मधुबनी का ही नहीं बल्कि देश के कई रेलवे स्टेशन की यही सच्चाई है . हाँ जरूरत है तो इसे बदलने की मगर इसकी सुरुआत कौन करेगा......? सिर्फ लिखने भर से बदलाब आ सकता हे क्या...? वैसे सच्चाई सब के सामने लाने के लिए शुक्रिया .
अंशु माला
Interesting Post!
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