मिथिला की ह्रदयस्थली मधुबनी एक बार फ़िर से चुनावी समर में डूबा हुआ है। राजनैतिक दृष्टीकोण से हमेशा से ही अग्रणी रहा मधुबनी लोकसभा क्षेत्र पहली बार पञ्चकोणीय मुकाबले में उलझ गया है।
आजादी के पूर्व से ही कम्युनिस्टों का गढ़ रहा मधुबनी बिहार का स्तालिनग्राद हुआ करता था, और कामरेड भोगेन्द्र झा इसके आखिरी सेनापति साबित हुए। पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर जगन्नाथ मिश्र को हराना भोगेन्द्र झा की और मधुबनी कम्युनिस्टों की सबसे बड़ी जीत रही।
अगर हम आंकडों पर नजर डालें तो मधुबनी का चुनाव हमेशा दो से तीन कोणों में उलझा रहा है, हम ज्यादा पीछे नही जायें मगर कम्युनिस्टों के पराभव को देखते हुए १९९८ के चुनाव से ही चुनावी जिक्र होना लाजिमी है। तीसरे मोर्चे के विफल सरकार के पराभव के बाद हुए चुनाव में मधुबनी का समीकरण बदला और लालू के सताक्षेप से पाँच बार के सांसद भोगेन्द्र झा टिकट विहीन थे। कामरेड की बागडोर पंडित चतुरानन मिश्र के पास थी और लोगों के बीच पहुँच ना होने का नुक्सान कि पहली बार सी पी आई के मत का नम्बर लाख के अंदर रह गया और बदलते परिवेश के साथ अपने साफ़ सुथरी पारिवारिक छवि का लाभ उठा डाक्टर शकील अहमद पहली बार लोकसभा पहुंचे।
१९९९ के चुनाव पर नजर डालें ये सबसे पहला मौका था जब यहाँ के कामरेड सिमट कर हजार के अंकों में रह गए। मधुबनीवासी के लिए विवादास्पद रहे भाजपा के हुकुमदेव यादव ने अपने निकटम कांग्रेस के डाक्टर अहमद को करीब ८० हजार मतों से परस्त किया। हुक्मदेव नारायण यादव ३२८६१६ मत मिले और डाक्टर अहमद को २६६००१ मत मगर सबसे चौंकाने वाला आंकडा कम्युनिष्ट का रहा, पुराने कामरेड भोगेन्द्र झा जिन्हें पहली पार लाख के अंदर सिर्फ़ ९९३९४ मत मिले बाकी ७ प्रत्याशी ने अपनी जमानत गवाई।
२००४ का चुनाव परिणाम बदलाव लेकर आया, मुकाबला फ़िर से त्रिकोणीय, मगर अपने खिसकते जनाधार को देखते हुए सी पी आई ने फ़िर से उम्मीदवार बदला और वापस चतुरानन मिश्र मैदान में थे। केन्द्र पर आधारित होती जा रहा चुनाव ने इस बार भी कम्युनिष्ट को निराश किया और बिहार का लेनिनग्राद ध्वस्त हो गया। २००४ के परिणाम को देखें तो डाक्टर अहमद ने तत्कालीन सांसद और केन्द्रीय मंत्री हुक्मदेव यादव को परास्त कर दिया और मतों ने बताया की वामपंथ का एक और किला ढह गया। डाक्टर अहमद जहां ३२८१८२ मतों की साथ अग्रणी रहे वहीँ १२ प्रतिशत की गिरावट के साथ भाजपा ने २४११०३ मतों को अपने नाम किया। कम्युनिष्ट के काडरके सिमटने का सिलसिला जारी रहा और कामरेड मिश्र महज ९२१६८ मत ही पा सके।
२००९ का चुनावी रण जारी है और पहली बार मधुबनी में टक्कर पाँच कोण से होने जा रही है। कांग्रेस ने जहां निवर्तमान संसद डाक्टर अहमद में विश्वास जताया है वहीँ भाजपा ने हुक्मदेव को ही प्रत्याशी बनाया है, युपीऐ का गठबंधन टूटने से राजद ने भी वरिष्ट नेता अब्दुल बारी सिद्दकी को मैदान में उतारा है। चतुरानन मिश्र की निष्क्रियता और भोगेन्द्र झा के निधन के कारण सी पी आई ने पुराने और आम लोगों से जुड़े जुझारू कामरेड डाक्टर हेमचन्द्र मिश्र को अपना प्रत्याशी बनाया है। बहुजन समाज पार्टी के लक्ष्मी कान्त मिश्र ने चुनावी बयार को एक और मोड़ दे दिया है। राजद के प्रत्याशी आने से जहाँ कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गयी है वहीँ बसपा ने भाजपा की नींद उडा दी है और सिमटता काडर कम्युनिस्ट की नैया को कहाँ तक ले जायेंगे ये प्रश्न है।
पिछले चार चुनाव से केंद्र को लगातार मंत्री देने वाला मधुबनी संसदीय क्षेत्र विकास की धारा से कोसो दूर है, चाहे कम्युनिस्ट के चतुरानन मिश्र हो या भाजपा के हुक्मदेव यादव या फिर कांग्रेस के शकील अहमद। मिथिला ने अपने पुत्रो से अपने को उपेक्षित ही महसूस किया है। विकास को तरसते भोलेभाले शांतिप्रिय मिथिला वाशी क्या इस बार सही उमीद्वार को चुन पायेंगे या फिर एक बार फिर से पुरानी कहानी दुहराई जायेगी।
केंद्र के राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाला मधुबनी अपने तमाम प्रतिनिधि से विकास की बाबत प्रश्न पूछता है..........
आर्याव्रत का यक्ष प्रश्न है.........
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