दिल्ली में आये दिन कड़ी सजा के नाम पर बच्चो को शिक्षको द्वारा मारा पिता जाता है। जब बच्चा जख्मी होता है, या फिर मौत का शिकार तो मीडिया और प्रशासन, काफी हो हल्ला करता है। अभिभावक प्रशासन से कारवाही की मांग करता ...लेकिन आरोपी किसी न किसी तरह बच जाता है। शिक्षको से जहाँ अपेक्षा की जाती है की वे बाचो को नया जीवन देंगे, लेकिन जब वे स्वम अपराधी की तरह बाचो के साथ ब्यवहार करने लगते है तो एसे में हम किसे कड़ी सजा देने की बात करते है..... यह एक बड़ी विडम्बना है।
जाहिर है की यह हमारे सिस्टम की असफलता है की शारीरिक दंड पर रोक के बावजूद बच्चो को शक्त सजा देने के नाम पर अपराध किया जा रहा है। डेल्ही में आये दिन किसी ना किसी रूप में खबरें सुनने को मिलती है, की अमुकबच्चे के साथ टीचर ने दुर्ब्य्हर किया है।
शिक्षको का यह ब्यवहार निश्चय ही चिंता को विषय है। किसी भी सभ्य समाज की पहचान एश बात से होती है की उसमे बच्चे कितना खुश रहते है। उन्हें कितनी आजादी है। देश में हाल के वर्षो में स्कूलों में कई नियम बनाये गए है। दुर्भाग्य है की उनकी अनदेखी की जा रही है।
नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्क्सन ऑफ़ चाइल्ड राईट्स ने शारीरिक दंड पर रोक के लिए स्कूलों में दिशा निर्देश जरी कर रखा है। और देश के कई राज्यों ने अपने स्कूलों में शारीरिक दंड पर रोक लगा राखी है। ...लेकिन घटना एक के बाद एक हो रही है।
1 comment:
NCPCR ने भले ही रोक लगा रखी है लेकिन अभी भी कई टीचर्स यही मानते हैं कि बच्चों को बिना ठॊंके-पीटे पढ़ाना असंभव होता है। मैं सोचता हूं कि टीचर का उद्देश्य उस बच्ची को मात्र कड़ा दंड देना रहा होगा प्राण लेना तो हरगिज नहीं...कितनी भी क्रूर टीचर हो ऐसा नहीं कर सकती... दुर्भाग्य है
जय जय भड़ास
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