गुस्सा और दुःख इतना ज्यादा है कि लग रहा है खूब जोर से चिल्लाऊं । जब तक भड़ास से नहीं जुड़ी थी यकीन मानिए कि शर्म क्या होती है पता ही नहीं था लेकिन डा.रूपेश श्रीवास्तव ने मुझे अपनी बहन बना कर मेरी जिन्दगी में इतना ज्यादा बदलाव ला दिया है कि जब मेरे और मेरी ही जैसी दूसरी लैंगिक विकलांग बहनों के सारे कपड़े उतरवा कर परेड करवाई गई तो एक पल को लगा कि लोकल ट्रेन से कट कर जान दे दूं लेकिन अगले ही पल मेरी आंखों के सामने मेरे डा.भाई का चेहरा आ गया जो हमेशा मुझे हिम्मत दिलाते रहते हैं कि दीदी एक दिन ऐसा जरूर आएगा कि ये लोग जो आपको इंसान नही समझते अपने करे पर शर्मिंदा होंगे ; फिर एक-एक करके मेरे सामने मेरे भाई पंडित हरे प्रकाश,यशवंत दादा,मनीष भाई,चंद्रभूषण भाई सामने आने लगे और मैं फिर पूरी ताकत से अन्याय का सामना करने के लिये खड़ी हो गयी हूं । मुंबई से प्रकाशित होने वाले मराठी दैनिक वार्ताहर और उर्दू दैनिक इन्कलाब ने एक खबर छापी जिसकी हैडिंग उन्होंने महज सनसनी फैलाने के लिये ऐसी रखी कि लोग उस खबर को चटखारे लेकर पढ़ें ,जरा आप सब खबर के हैडिंग पर ध्यान दीजिये "हिजड़े द्वारा लोकल ट्रेन के लेडीज़ कम्पार्टमेंट में महिला से बलात्कार की कोशिश" । बस फिर क्या था बड़ी-बड़ी वारदातें हो जाने के बाद भी कुम्भकर्ण की तरह से सोने वाली मुंबई पुलिस का लैंगिक विकलांग लोगों पर कहर टूट पड़ा । हम सफर करें तो ट्रेन के किस डिब्बे में अगर पुरुषों के साथ जाएं तो सुअर किस्म के लोग जिस्म रगड़ने का बहाना देखते हैं ,कुत्सित यौन मानसिकता के नीच पुरुष भीड़ का बहाना कर के सीने और नितंबों पर हाथ लगाते हैं ,हमारे हाथॊं को पकड़्ते हैं पर हमें तो शर्म नहीं आनी चाहिए और न ही हमें गुस्सा आना चाहिये इन कमीनों की हरकत पर क्योंकि शर्म तो नारी का गहना होती है और हम तो न नारी हैं न नर । महिलाओं के डिब्बे में जाओ तो कुछ सुरक्षित महसूस होता था लेकिन इस सभ्य समाज के मुख्यधारा की पत्रकारिता के इस हथियार ने हमें यहां से उखाड़ कर बेदखल कर दिया है । ध्यान दीजिये कि अगर कोई अपराधी किस्म का इंसान बुर्का पहन कर ऐसी नीच हरकत करता तो क्या ये पत्रकार और संपादक महोदय ये हैडिंग बनाते कि एक मुसलमान महिला ने दूसरी महिला के साथ बलात्कार करने की कोशिश करी ,नहीं ,ऐसा तो वे हरगिज़ नही करते क्योंकि इस बात से सनसनी नहीं फैल पाती लेकिन एक हिजड़े के बारे में ऐसा लिखा तो सबका ध्यान जाएगा । अरे कोई तो इन गधे की औलादों को समझाए कि अगर हिजड़ा है तो बलात्कार क्या पैर के अंगूठे से करेगा ,वो तो महज एक अपराधी था जो हिजड़े का वेश बना कर आया था । संपादक की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वो ये देखे कि ऐसी खबर का क्या परिणाम होगा । अब मुझे समझ में आ रहा है कि देश में जातीय दंगों को फैलाने में मीडिया का क्या रोल रहता है ,अगर किसी ने मौलाना का वेश बना कर किसी को गोली मार दी तो ये पहले मरने वाले को देखेंगे कि क्या वो हिंदू था और फिर खबर बनाएंगे कि मुसलमान ने हिंदू की हत्या कर दी फिर भले पूरे देश में जातीय दंगों की आग भड़क कर सब स्वाहा हो जाए । हिजड़े को निशाना बना कर खबर छाप दी और चालू हो गया पुलिस का धंधा ,सब को नंगा करके परेड कराई गई ताकि देखा जा सके किसके जननांग कितने विकसित हैं या क्या है हिजड़े की कमर के नीचे और टांगो के बीच में ? इन कमीने पत्रकारों को अगर इतनी ही चिंता है तो क्यों नहीं अपनी ताकत इस्तेमाल करके जेंडर आईडेंटीफ़िकेशन का कानून बनाने के लिये सरकार पर दबाव बनाते ? कम से कम हमें भी तो ये पता चल जाएगा कि हम किस डिब्बे में यात्रा करें । किसी पत्रकार ने रेलवे पुलिस से यह नहीं पूछा कि जब हर महिला डिब्बे में एक रेलवे पुलिस का सुरक्षाकर्मी तैनात रहता है तो जब वो अपराधी बलात्कार की कोशिश कर रहा था तो क्या वो पुलिस वाला तमाशा देख रहा था या अपनी अम्मा के साथ सोने गया था , क्या यात्रियों की सुरक्षा की रेलवे की कोई जिम्मेदारी नहीं है ? मैने नीच पुलिस वालों के हाथॊं को अपने जिस्म पर रेंगते हुए महसूस किया ,ये सुअर किसी गंदी दिमागी बीमारी के मरीज जान पड़े मुझे सारे के सारे । क्या मेरी इस अस्तित्व की लड़ाई में मेरे भड़ासी भाई-बहनें साथ हैं ये सवाल आप सब से है ,नाराज मत होइएगा कि ये क्या होली के रंग में तेज़ाब मिला रही है लेकिन बात ही ऐसी है । मेरे भाई डा।रूपेश अभी आधी रात को भी मेरे साथ हैं कि कहीं शर्मिन्दगी से मैं कुछ गलत निर्णय न ले लूं इस लिये जबरदस्ती मुझे पकड़ कर अपने घर ले आए हैं । होली मनाइए लेकिन अपनी इस बदकिस्मत बहन के बारे में भी सोचियेगा ।
1 comment:
अग्नि बेटा! दीदी की ये पुरानी पोस्ट उस समय की है जब लालची बनिया अपने चेहरे पर भलमनसाहत का मुखौटा चढ़ाए बैठा था इसलिये दीदी ने इस पोस्ट में उसका भी नाम उतने ही आदर से लिखा है...
जय जय भड़ास
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