आदरणीय हरकीरत बहन से बिना शर्त माफ़ी चोरी के लिये

Harkirat Haqeer said...
आदरणीय डा.रुपेश जी,आपसे मै सिर्फ एक सवाल पूछना चाहती हूँ अगर आपकी किसी रचना को कोई अपने नाम से प्रकाशित करता तो आप क्या करते...?? मुनव्वर जी क्या जाने मैंने ये रचनाएँ किन हालातों में , कितने दर्द के बीच गुजरते हुए लिखीं हैं ....अगर शब्दों के हेर फेर से ही नज्में लिख हो जाएँ तो आज हर कोई अमृता, परवीन या ग़ालिब हो......हाँ मुझे आपत्ति है क्योकि इन नज्मों में बसे दर्द के साथ मैंने बरसों काटे हैं ...उन्हें भोगा है...ओढा है ...अपने सीने में बरसों दफ़न कर रखा है ...अपने आंसुओं से सींचा है मैंने...तो अब इतनी जल्दी किसी और के साथ कैसे जाने दूँ ...?? पहले वो बरसों की तड़प लाये...वो सिसकियाँ लाये ...हाँ मुझे तकलीफ है क्योकि ये दर्द सिर्फ मेरा है.......जब जिस्म चीर कर कुछ लिखा जाये रुपेश जी तो दर्द तो होता ही है.....!!
April 5, 2009 9:12 AM

आदरणीय हरकीरत बहन जी,मैं आपसे मुनव्वर सुल्ताना जी और उनके जैसे तमाम भोले चोरों की तरफ़ से बिना शर्त माफ़ी मांगता हूं लेकिन जब तक आप इन तमाम बातों पर विमर्श नहीं करतीं उन्होंने कहा है कि वे उस रचना को ब्लाग पर से हरगिज न हटाएंगी क्योंकि छिछॊरपन और बेशर्मी का आरोप जो आपने लगाया उन्होंने उसे भी सहर्ष स्वीकार लिया है साथ ही आपने उनके चित्र सहित लंतरानी की जो लिंक अपने महाप्रसिद्ध ब्लाग पर लगा कर सहयोग करा है उसके लिये हार्दिक धन्यवाद कहा है और साथ ही पूछा है कि अब जब पता चल ही गया है कि आप इतनी महान नज़मनिग़ारा हैं तो जितनी भी बिना नाम की रचनाएं पसंद आएंगी और लंतरानी पर लिखना होगा उन्हें benefit of doubt के अंतर्गत आप का ही मान लिया जाएगा जिसके लिये वे आपके ब्लाग की लिंक लगाने की अनुमति चाहती हैं। अब आपकी बारी है कि आप अपनी विशाल सोच का परिचय दें। उम्मीद है कि आप मेरी सोच से सहमत न होंगी मैं सहर्ष धन्यवाद करूंगा उस व्यक्ति को जिसने ऐसा करा कि मेरी रचना को अपना कह दिया है जैसे कि मेरे बच्चे को सभी उतना ही प्यार करें जितना कि मैं करता हूं। आप जिन सिसकियों और दर्द के साथ जिस्म को चीर कर काव्य लिखने की बात कर रही हैं वह भी मात्र शब्द प्रपंच नहीं है तो और क्या है? जितने भी लोग सिसकते हैं पीड़ित और उत्पीडि़त होते हैं आपकी तरह कविता नहीं लिख कर व्यक्त करते तो क्या दर्द और पीड़ा की अभिव्यक्ति का कापीराइट ले लेते हैं। बहन जी दर्द की एक मात्र अभिव्यक्ति होती है और वो है रोना न कि कविता लिखना ये एक चिकित्सक से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। दरअसल आपकी छटपटाहट का कारण तो ये है कि आपको लग रहा है कि आपकी प्रसिद्धि जो इतनी महान-महान रचनाओं से आपको हासिल है वह शायद मुनव्वर सुल्ताना जी ने चुरा ली। अरे बहन जी! जब आप देख रही हैं कि उन्होंने कहीं ये नहीं कहा कि ये रचना उनकी है और उन्होंने माना है कि आपकी रचना है जो कि उन्हे पता न था जैसा कि उन्होंने घटना का उल्लेख भी करा है मात्र उर्दू में तर्जुमा करा है तो फिर इतना कष्ट किसलिये? कहीं इस बात का कष्ट तो नहीं है कि आपका दर्द बिना आपका नाम जाने उर्दू जानने वाले भी जान गये। दो तरह के लोग देखे हैं एक तो वो जो किसी पीड़ित इंसान या हैवान की पीड़ा को दूर करने के लिये औषधि की व्यवस्था करते हैं दूसरे वो जो सबको जाकर उसकी पीड़ा की कविता,नाटक और कहानी सुना कर शराफ़त जताते हैं कि वे उसकी पीड़ा से कितने दुखी हैं,इस तरह की छ्द्म सहानुभूति कितनी उपयोगी है इस बात का उत्तर दीजिएगा यदि हो तो वरना मुझे भी छिछोरा और बेशर्म कह कर चुप हो जाइयेगा क्योंकि आपने ये बता दिया कि आपके दर्द और संवेदनशीलता का असली चेहरा क्या है। जिस्म चीर कर या तो हत्या होती है या फिर शल्य चिकित्सा, कविता नहीं लिखी जाती ये महज शब्दाडंबर है जो कि मेरे जैसे जाहिल लेकिन दूसरों का सचमुच दर्द महसूस करने वाले चिकित्सक को तो भली प्रकार पता है। किसी स्त्री के पीठ पर पड़े जूतों के निशानों में कला और कविता तलाशना कम से कम मैं अब तक न सीख पाया। दर्द महसूस करने के लिए वेबपेज से बाहर आकर दर्दियों को देखना होता है और ये काम कर रहा हूं इसके लिये किसी नाम या पैसे की जरूरत नहीं है। आप मात्र मानसिक श्रम करने वाली एक श्रमिक हैं जिसके श्रम का मूल्य कोई भी प्रकाशक देकर सारे अधिकार प्रकाशकाधीन कर लेता है तब दर्द और संवेदनाएं वगैरह सिर्फ़ रायल्टी का साधन होते हैं। बस एक अंहकार रहता है कि इस रोने चिल्लाने वाले जाहिलों की पीड़ा को कितने सुंदर शब्दों में बांधा है और इस बात के लिये वाहवाही तो मुझे ही मिलना चाहिये। जब कोई पीड़ा आपको हुआ करे तो दवा लेने की बजाए कविता लिख कर अपने टिप्पणीकारों की नजर कर दिया करिये यकीन मानिये कि आप जैसी संवेदनशील कवियत्री का दर्द दूर हो जाएगा। अगर इतना ही भय है कि कोई आपका "दर्द" चुरा लेगा या उसमें शरीक हो जाएगा तो उस दर्द को दुनिया के सामने दिखाने की जरूरत नहीं है।
कुछ बातें आपके टिप्पणीकारों के लिये भी हैं जो भड़ास पर अपना मुखौटा लेकर आने तक का साहस नहीं करते जैसे कि समीरलाल जो कि उड़नतश्तरी के नाम से लिखते हैं खुद को अत्यंत संवेदनशील दर्शाते हैं कोई कुछ भी लिखे तो तत्काल टिप्पणी करने पहुंच जाते हैं, लैंगिक विकलांग(आप जैसे संवेदनशील लोगों के लिए "हिजड़ा") मनीषा नारायण के ब्लाग अर्धसत्य पर कभी एक टिप्पणी देने कोई आगे नहीं आए लेकिन जब बाबू जी ने लिखा तो पहुंच गये शराफ़त का पोटला लेकर कि भाई हम भी सहानुभूति रखते हैं। बस एक व्यक्ति ने साहस करा जिन्होंने वेबपेज से आगे आकर मनीषा नारायण के प्रति न सिर्फ़ सहानुभूति और प्रेम जताया वरन उन जैसे सभी की पीड़ा को बखूबी समझा और अपने ब्लाग पर लिखने के साथ ही इन सबसे सीधा जुड़ाव भी स्थापित करा वो एकमात्र इंसान हैं गुरूवर्यसम शास्त्री जे.सी.फिलिप। मैं निजी तौर पर कहता हूं कि क्यों किसी ने एक पूरा ब्लाग भड़ास ही चोरी हो जाने की चर्चा तक नहीं करी क्योंकि वे सब स्वयंभू शरीफ़ हैं बस आपकी कविता की "चोरी" की सूचना देने और भर्त्स्ना करने दौड़ पड़े और चोरी भी ऐसी है कि जिसका सामान दुनिया के सामने रखा है एक वैश्विक मंच पर जबकि आपके द्वारा चोरनी ठहरा दी गयी मुनव्वर आपा ने बताया है कि उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं थी। क्या सामाजिक सरोकार है ऐसे लोगों के जीवन का बस बड़ी-बड़ी बातें,सिद्धांतों और आदर्शों की जुगाली करना लेकिन जब सचमुच में समाज को इनकी जिन कोनो पर जरूरत है वहां से ये कोसों दूर हैं क्योंकि वहां तो बदबू है गंदगी है बुराइयां है। पाखंडी और ढकोसलेबाजों के जिस जमावड़े से आपने कहा है कि सभी ब्लागर एकत्र होकर आपको न्याय दिलवाएं वो खुद अपनी मदद नहीं कर सकते आपके लिये क्या आगे आएंगे? चार शब्द टिप्पणी में लिख दिये तो आप लगीं इनके आगे रोने कि न्याय दिलवाएं। आपकी बात सुनते हैं तो जरा इन सबको किसी सामाजिक मुद्दे पर आफ़लाइन एकजुट करिये आपको पता चल जाएगा।
अंतिम बात कि कम से कम मेरे नाम के आगे "आदरणीय" जैसा गरिष्ठ शब्द न लगाएं मैं जरा भी आदरणीय नहीं हूं आप हैं न सिर्फ़ आदरणीय बल्कि पूज्यनीय क्योंकि आप कवियत्री हैं शब्दों में अपने दर्द को बताती हैं न कि रो-चीख कर............
जय जय भड़ास

4 comments:

mark rai said...

dard ko churana mushkil hai..mahshush kiya jaa sakta hai ...in sab ghatnao se dil me dard to hota hi hai ...par majbutibhi to koi chij hai ..ajma kar dekhna chahiye

दीनबन्धु said...

मार्क भाई दर्द को मात्र महसूस कर लेना काफ़ी नहीं है अपने स्तर पर उसे दूर करने का जतन करना चाहिये जीवन आफ़लाइन घटित होता है आनलाइन नहीं....
मैं भी खुद को एक अव्वल दर्जे का घटिया नरपशु मानता हूं इन मुखौटाधारियों की परिभाषा के अनुसार
जय जय भड़ास

ज़ैनब शेख said...

इन्होंने मुनव्वर आपा के लिये जिस तरह के संबोधन करे हैं उनसे इनकी संवेदनशीलता का पता चल जाता है कितनी महान हैं ये हकीर बीबी ज्यादा नहीं सच तो ये है कि इनके हकीर में से काफ़ के दो नुक्ते निकल कर बता देते हैं कि ये और इनके वकील क्या है...
जय जय भड़ास

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

गुरुदेव,
हरकीरत हकीर या फिर लकीर के फकीर. हमने इनकी आत्मा चुराई हम सभी शर्मिन्दा हैं मगर ऐसे ही नहीं, इन्होने आप के बारे में जो भी लिखे हैं और उस लेख पर भेड़ की भीड़ ने जो अपने सुविचार दिए हैं से सोचनीय हूँ. नि:संदेह ब्लॉगर समाज विचारकों से विहीन होता जा रहा है.
हरकीरत मोहतरमा साबित करें की इनकी लेखनी है और संग ही अपनी पहचान भी क्यूँ की क्षद्मता की बू आ रही है.
जय जय भड़ास

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