गामसय वापस आबैत रही। मधवापुर सय विदा भेलहुँ मधुबनी केर लेल घाट गाम, उमगाँव होइत पहुँचल बासोपट्टी। घुमैत फिरैत पुरान दिन याद आबैत छल जखन हम नेना भुटका छलहूँ आ पापा के संगे बासोपट्टी आबैत छलहूँ, रस्ते देखैत बस स्टैंड लग अयलहुं तय ध्यान गेल सिनेमा हाल के तरफ़ आ फेर सय पुरान दिन में चली गेलहुं जखन अमिताभ बच्चन के सिनेमा देखे के लेल पापा के संगे अतय आबैत छलहूँ।
मुदा अहि बेर के हाल के गेट के दृश्य चौंका देलक। गाम सय लय कय मधुबनी तक सब ठाम मैथिली आ भोजपुरी सिनेमा सिनेमा हाल के शोभा बढ़ा रहल छल, हिन्दी सिनेमा के लोक बिसरी चुकल छलाह।
लोक सब सय जखन बासो पट्टी में हम गप्प केलहुं तय हुनका सब के कथनानुसार हिन्दी सिनेमा के फंतांसी रूप जे की शहरी वातावरण पर आधारित होइत छैक ताहि सय अलग मैथिली आ भोजपुरी सिनेमा हमर घर के आँगन के वातावरण पर आधारित होइत जाहि में अपनत्व के अनुभव होइत यानी की अपन परिवार के कहानी बुझाइत।
स्थिति स्पष्ट ठीक जे ग्रामीण लोग के फंतांसी नही अपनत्व के कहानी पसंद छैन्ह यानी की हिन्दी सिनेमा के ग्रामीण दर्शक समाप्त प्राय: छैक। देखल जाय तय ई नीक वातावरण थीक क्षेत्रीय सिनेमा उद्योग के लेल। और संदेश सेहो जे लोगक पसंद फंतांसी नही भय सकैत।
2 comments:
भाई,
ठीक कहलहुं, हमहू गाम में अतबे देखि के अयलहुं. आहाँ सा सहमती जे हमर मैथिली आ भोजपुरी सिनेमा के भविष्य गाँव में हिंदी सिनेमा के मुकाबले बेसी ठीक.
धन्यवाद
बढिया है भिडू,
लोकल को बढ़ाने का. अपुन भी ऐसाहीच चाहता है.
बधाई
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