गीता की कसम खा कर बीजेपी के योवा नेता वरुण गाँधी हिंदू मुस्लिम सम्प्रदाय की भावनावो को भड़काने में ही अपना हित साधना चाहते है। यह देश के लिए दुर्भाग्य की बात है की एसे साम्प्रदायिक तत्यों को हमें यानि जनता को झेलना पड़ रहा है। इन्हे गाँधी नेहरू परिवार का वरिष् कहा जाए या ९० के दवार में राम मन्दिर के नाम पैर साम्प्रदायिक माहौल बनने वाले आडवानी की परम्परा का वाहक युआ नेता।
बीजेपी को जब कोई मुद्दा नही सुझाता है तो चुनाव के पहेले धर्म आधारित राजनीत शुरू कर देती है। वर्तमान में नरेन्द्र मोदी, विनय कटियार, प्रवीन तोगडिया जैसे नेता साम्प्रदायिक षड्भावना विगाडकर सत्ता का शुख भोगना चाहते है। हलाकि बीजेपी के वरिस्ट नेता लाल कृष्ण आडवानी, मुरलीमनोहर जोशी, उमा भरती, कल्याण सिंह आदि नेता भी दूध के धुले नही है ।
वरुण गाँधी के इतिहाश पर नजर डाली जाय तो पता चलता है की इन्होने लन्दन स्कूल ऑफ़ इकनॉमिक से कानून और अर्थ शाश्र्त की पढाये की है । इनकी रास्ट्रीय सुरक्षअ और कविता पर किताब भी आयी है की इतना पढाकू ब्यक्ति साम्प्रदायिक है ।
जाहिर है की देश के नेता यह जान चुके है की चुनाव में जितने का सबसे अचूक मंत्र " साम्प्रदायिक " है । वरुण गाँधी ने पिली भीत में अभी तक तीन "हिंदू सम्मलेन " को संबोधित कर चुके है । इन्ही समेलानो के जरिये वे अपनी चुनावी वैतरणी पर करना चाहते है। बीजेपी का चुप रहना एइश वातकी और इशारा करता है की उशकी तरफ से मूक सहमति है । इतना ही नही गाँधी परिवार का माहैल विगाडानेका पुरानअ इतिहाश रहा है ।
लोक तंत्र का कला इतिहाश एमर्जंची इश्का उद्धरण वना है । जनता को यह पुरी तरह से समझाना होगा की राजनीत के ईएन शौदगरों से कैसे बचा जाय और चुनाव में अपनी कड़ी प्रतिक्रिया से अमन विगाडाने walo के muh पर जोरदार tamacha jadana hoga।
2 comments:
प्रवीण तोगड़िया के नाम से मैं काफ़ी समय तक कन्फ़्यूज रहा मैं सोचता था कि ये क्यों लिखा रहता है कि "प्रवीण तो गड़िया...." क्योंकि हमारे यहां गड़िया तो उन्हें कहते हैं जो उल्टी साइकिल होते हैं
जय जय भड़ास
मुंह पर तमाचे से कुछ नहीं होगा भाई इनके पिछवाड़े पर तो हजारों जूते लगाने चाहिए तब इन पर थोड़ा सा असर दिखेगा इतनी मोटी चमड़ी है सुअरों की...
जय जय भड़ास
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