जिस आतंकवाद को पाकिस्तान बरसों से से रहा था। अब वह फूट चुका है..पाकिस्तान में श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हमला करके आतंकियों ने एक बार फ़िर दुनिया को आइना दिखा दिया है। साथ ही पाकिस्तान की सूरत भी दुनिया के सामने उजागर कर दिया। अब तरह - तरह की बातें मीडिया में आ रही हैं, जैसे- पाकिस्तान में हुआ हमला फिक्स था या फ़िर आतंकियों ने बस को अगवा बनने का प्लान किया था। लेकिन जो सबसे बड़ी बात है वह ये है की येही आतंकी जब बॉम्बे में आतें हैं तो ख़ुद मरने से पहले २०० मासूमों को भी मार डालते हैं और जब पाकिस्तान में हमला करते हैं तो किसी बेगुनाह( पुलिस वालों को छोड़कर) पर गोलियां नही चलाते? इसका सीधा सा मतलब है की वो लोग अपने लोगों को नही मरना चाहते। हाँ डराकर अपना गुलाम जरुर बनाना चाहते हैं। इतना तो तय है की ये आतंकवादी सिर्फ़ और सिर्फ़ मानवता के दुश्मन हैं। वरना निरीह खिलाड़ियों को निशाना बनाने की बात ही नही होती। सच पूछा जाय तो तालिबानी जिस शरियत कानून को पुरे पाकिस्तान में लागू करना चाहते हैं ये हमला उसी तरफ़ बढाया गया कदम है। जब से पाकिस्तान आजाद हुआ है तब से लेकर आजतक वहां लोकतंत्र कायम नही हो पाया। हाँ बिच के कुछ सालों के डेमोक्रेसी जरुर रही वो भी सेना की दखल के साथ। दुनिया के सभी इस्लामिक देश अपने अपने हिसाब शरियत कानून लागू किए हैं। आप नज़र उठा कर देख लीजिये अरब का शरियत, दुबई और बहरीन का शरियत , इरान का शरियत सब भिन्न तरह के हैं। लेकिन सबसे खतरनाक शरियत तालिबानियों का है। इनकी शरियत में औरतों को घरों में कैद करना, लड़कियों की पढ़ाई बंद करना और मर्दों की दाढ़ी अनिवार्य है, जबकि अन्य इस्लामिक देशों के शरियत में ऐसा कुछ भी नही है। तालिबानी इस्लाम में दाढ़ी नही देखते वे दाढ़ी में इस्लाम को धुन्धते हैं। इनकी येही मानसिकता पाकिस्तान के लिए ही नही बल्कि पुरी दुनिया के लिए आने वाली सबसे बड़ी चुनौती है...
जय भड़ास जय जय भड़ास
5 comments:
मनोज भाई धार्मिकता और धर्मांधता में जब अंतर समाप्त होने लगता है तब ऐसी ही स्थितियां बनती हैं जो मानवता के लिये घातक होती हैं इनका धर्म से कोई सरोकार नहीं होता।
जय जय भड़ास
दाढ़ी,चोटी,पगड़ी,टोपी इन सारी बातों का मजहब से क्या लेना देना। कट्टरपंथ ने धर्म और क्रूरता के बीच की लकीर को मिटा दिया है।
जय जय भड़ास
शरीयत के बारे मे कहने में जरा भी भय नहीं है कि ये मजहबी कानून तब बनाए गए थे जब लोग कबीलाई सोच और समाज में जीते थे आज शरीयत की तमाम बातें शायद समयबाह्य हो चुकी हैं लेकिन फंडामेंटलज़िम इस समय के बदलाव को बर्दाश्त ही नहीं कर पा रहा है क्योंकि अगर बदलाव स्वीकारा तो उसका वज़ूद खत्म हो जाएगा....
अल्लाह इनकी सोच को तरक्कीपसंद बनाए...
अब हो सकता है कि भड़ास पर भी इनकी बुरी नजर पड़ जाए क्योंकि धमकियां तो शुरूआत से ही आनी शुरू हैं ही....
जय जय भड़ास
manoj jee mera thoda sochna alag hai. koi bhi religion riot nahi chahata usake follower me kuchh log murkh aur jaahil hote hai.....ya aap kah sakate hai ki jyaada laalchi hote hai...we human being ke nature se parichit nahi hote ya natak karate hai.
mera yah bhi manana hai ki koi bhi religion agar samay ke saath nahi chalata hai to rudhiwadita badh jaati hai . islaam ke saath yahi problem hai.
मनोज भाई कट्टरपंथ और रूढ़िवादिता के कंधे पर शरीयत का भूत चढ़ा कर जो खेल चल रहा है उसे पूरी दुनिया देख रही है। इसके पीछे वो लोग हैं जो ताकत हासिल करने के लिये पगलाए हुये हैं और धर्म को बस इस्तेमाल कर रहे हैं इन कमीनों को तो नर्क के ग्राउंड फ्लोर में भी जगह नहीं मिलेगी...
जय जय भड़ास
Post a Comment