भड़ासियों खुशखबरी है कि दारू बेच कर अरबों रुपया कमाने वाले व्यवसायी विजय माल्या(किंगफिशर वाले) ने कई करोड़ रुपए खर्च करके राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चश्मे आदि की नीलामी बोली लगा कर सामान प्राप्त कर लिया है,खुशी है(पर किस बात की???)। इसे कहते हैं इच्छाशक्ति का होना लेकिन क्या विजय माल्या या किसी अन्य अरबपति ने इस बारे में सोचा है कि हमारे ही देश की धरोहरों को जो गोरे चुरा ले गये ये खरीद क्यों रहे हैं राष्ट्रीय स्तर पर सरकार पर क्यों दबाव नहीं बनाते कि इंग्लैंड सरकार उसे खुद ही ससम्मान वापिस करे?शायद सच तो ये है कि देश के लिये आजादी भी व्यवसायी जनों ने अपने लिये खरीदी थी ताकि बिना बंदूक के वे अपने देश के संसाधनों का दोहन कर सकें जैसा कि हो रहा है। ये कुछ वैसी ही बात है कि गांधी के तत्त्वों को जीवित रखा जाए ताकि लोग अपने शोषण का विरोध चंद्रशेखर आज़ाद की तरह से न कर पाएं वरना बेशर्म विजय माल्या इंग्लैंड से अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की पिस्तौल (जिसे वे प्यार से "बम-तुरू-बुख़ारा" कहा करते थे) लेकर आता। यदि आज़ाद जैसे तत्त्व पुनर्जीवित हो गये तो फिर हम देश की छाती पर गुलामी के प्रतीक बना कर रखे ’इंडिया गेट’ को सहन नहीं करेंगे या फिर कहीं ऐसा न हो कि हम कांग्रेस के उदय पर ही दोबारा सोच कर इतिहास खंगालने लगें। जो कौम अपने शहीदों को भूल जाती है वो धीरे-धीरे खत्म हो जाती है। यदि हमारी क्रांति के मौलिक तत्त्व निकल कर सामने आने लगे तो कहीं ऐसा न हो कि ऐसी परिस्थितियों में जब सरकार अमीरों के लिए गरीब किसानों की जमीनों पर सेज़ की शय्या सजा रही है ताकि वे इस देश के किसानों की धरती मां से आसानी से बलात्कार कर सकें और वहां सजा दें अपने मशीने कारखाने यानि विकास किसका हुआ ...? हर हाल में पूंजीपति का और विकास का झुनझुना किसे पकड़ाया गया? किसान और दस्तकारों को......।
यदि देश वाकई स्वतंत्र है तो विजय माल्या नहीं बल्कि हमारी सरकार को इन सारी चीजों को वापिस लाने के प्रयास करने चाहिये।
जय जय भड़ास
यदि देश वाकई स्वतंत्र है तो विजय माल्या नहीं बल्कि हमारी सरकार को इन सारी चीजों को वापिस लाने के प्रयास करने चाहिये।
जय जय भड़ास
3 comments:
बेटा अगर आज़ाद की पिस्तौल भारत वापिस आ गयी तो उस सोच के जो बीज दबे हुए हैं फिर अंकुरित होने लगेंगे इस लिये काले अंग्रेज कभी नहीं चाहेंगे कि "बम-तुरू-बुख़ारा" भारत आए। गांधी और नेहरू का जूता-चप्पल ही इस देश की थाती है बस और तो कुछ है नही दुनिया को दिखाने के लिये। सारी दुनिया के सामने गुलामी के प्रतीक इंडिया गेट पर हमारे प्रधानमंत्री आदि सलामी देकर क्या जताते हैं ये लोग क्या अब तक नहीं समझे? हम अभी भी दासता के तत्त्वों को ही मानते हैं।
जय जय भड़ास
मे आप से सहमत हु
i really agree with u. hamaari sarkaar ki ye nakaami hai ... jis gandhi ne wine ko kabhi haath nahi lagaya...jis wine fridom struggle ke douraan gandhi ne apana sabase bada shatru mana tha.....aaj ek wine ka pujaari unake samaan ko lata hai.sarkaar ko sharm nahi aati aur phir gandhi ki aatma roti nahi hogi...defenately agar aatma ka astitwa hota hai to gandhi ki aatma karaah rahi hogi.....
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