प्रचार माध्यमों ने अब एक खास किस्म की रणनीति बना ली है वे पहले महिलाओं पर केन्द्रित रहा करते थे जैसे कि कार से लेकर साबुन तक के एडवर्टाइज़ में स्त्री ही नजर आती थी लेकिन अब बच्चे प्रचार के केन्द्र में हैं। प्रचार तंत्र ने बालमन पर अतिक्रमण करना शुरू कर दिया है क्योंकि अब वणिक जन उस सिद्धांत को समझ गये हैं कि बालहठ तो स्त्रीहठ से भी ऊपर मानी जाती है। जीवन बीमा से लेकर शीतल पेय के एडवर्टाइज़ अब बच्चों को केन्द्र में रख कर बनाए जाते हैं। इसका असर भी बाजार पर हुआ है जैसे कि मेरे मित्र श्री येशुदास का छोटा सा बेटा उनकी कमीज खींच कर कहता है कि पापा मुझे ये पीना है जब उन्होंने पूछा कि ये मतलब क्या, तो बच्चे ने तुरंत कहा कि पापा मुझे "ये है यंगिस्तान मेरी जान" पीना है यानि कि पेप्सी......। आप अंदाज लगा लीजिये कि ये एडवर्टाइज़ बच्चों के कोमल मन में कितने गहरे तक घुस कर अतिक्रमण कर चुके हैं।
जय जय भड़ास
3 comments:
ये खतरनाक हो रहा है बच्चे कोमल और मासूम होते हैं उनकी कोमलता का दोहन करे जाने के खिलाफ़ कोई कानून नहीं है क्या? जीवन बीमा की प्रचार में बच्चा कहता दिखता है कि पापा ये पालिसी सही है....मज़ाक बना कर रख दिया है बचपन के भोलेपन का...
जय जय भड़ास
jee rupesh jee mai aapake vichar se sat pratishat sahamat hoon. aaj bachhe multinational companies ke jaal me fasate jaa rahe hai... bachpan me hi agar unpar inaka asar pad gaya to jawaani aur budhaapa....
aap samajh rahe hai n mai kya kahana chaah raha hoon.... kuchh to karana hoga... apane level se hi sahi... ek ko bhi bacha liya to satisfaction milega.
गन्दा है पर धंधा है ये.....
गुरुवार बाजारवाद सब पर हावी है, और सबसे ऊपर भी. बाजार ने सारे रिश्ते, भावना, आत्मा यान तक कि मान सम्मान तक को बाजार में उतार दिया है.
संडास फार मीडिया का उदाहरण ज्यादा पुराना नहीं.
इस बाजारवाद से आत्मा को बचा कर लाना नि:संदेह हमारी चुनौती है.
जय जय भड़ास
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