बेबस आयोग, भारी पड़ता राजनीति और मीडिया !!!!!

वरुण गाँधी का आपत्तिजनक बयान विवादास्पद होना ही था और मिलना था राजनीति को एक नया रंग और सनसनी के लिए विख्यात मिडिया के लिए एक एक्सक्लूसिव, हुआ भी कुछ ऐसा ही

बयान को चुनाव आयोग ने विवादास्पद और अलोकतांत्रिक करार दिया और दे डाली सलाह भापा को कि वरुण को उम्मेदवार ना बनायें मगर भापा के उल्टे तेवर ने जहाँ आयोग की अहमियत पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया वहीँ भारतीय संविधान को भी खोखला बता गया संग ही कह गया कि भारतीय लोकतंत्र पर राजनेता हावी हैं, राजनीति हावी है और देश के लोक बस इन चोंचले में पिसने वाले हैं

आइये जानते हैं इस से जुड़े कुछ तथ्य................


) वरुण अलोकतांत्रिक बयानबाजी के दोषी, भाजपा उम्मेदवार बनाये :- चुनाव आयोग

) दोष साबित होने के बावजूद कानून के बिना बेबस चुनाव आयोग :- पूर्व चुनाव आयुक्त

) राहुल की पीलीभीत से उम्मीदवारी बरकरार :- खबरिया चैनल और भाजपा

) भाजपा चुनाव आयोग की राय मानने को बाध्य नही :- कानुनी जानकार

) गांधी और उनके विचार देश के लिए बेमानी, देश के साथ धोखा :- वरुण गाँधी

) आयोग का निर्णय असंवैधानिक :- भाजपा ( बलबीर पुंज)

) पीलीभीत लोकसभा संसदीय क्षेत्र में बदलाव के कारण भाजपा की रणनीति :- मनोरंजन भारती और कमाल खान


तो क्या हमारे देश में आयोग का मतलब सिर्फ़ राजनीति और राजनेता की अपनी महत्वाकांक्षा को पुरा करना है, अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना है। अगर ये ही आयोग लोक हित की बात करे, देश हित कि बात करे तो असंवैधानिक ? २००४ के चुनाव में केरल से सांसद पी सीई थॉमस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था और हमारी लुंज पुंज कानून और न्याय व्यवस्था के कारण इस पर सधे चार साल बाद निर्णय आया वोह भी मात्र वोट के अधिकार के बाबत, थामस महाराज लोकतंत्र कि धज्जियाँ उड़ते देश के पैसे का बखूबी इस्तेमाल करते रहे।

क्या ये ही हमारे लोकतंत्र का भविष्य है ?

क्या ये ही हमारे देश के राजनेता हैं?

क्या ये ही राजनितिक पार्टी और मिडिया कि जवाबदेही है ?

अनकही ये प्रश्न करता है।



8 comments:

Chandi Dutt Shukla said...

"अच्छा लिखा...कुर्सी और शोहरत के लिए कुछ भी कर सकते हैं नेता"

Om Prakash said...

Swasthya Loktantra to kabhi hamare desh me kabhi aaya hi nhi Rjnishji.lekin jinki jimmedari thi use banane ki o sabhi aloktantrik ho chuke hain.isliye aapki chinta jayaj hai.

Mrs. Asha Joglekar said...

कौन किसको कह रहा है, सब की दाढी में तिनका है । जनता का दु्र्भाग्य है कि उसे बुरा, बहुत बुरा, और बहुत ज्यादा बुरा में से ही चुनना है । भाजपा ने चावला जी के लिये ही आपत्ती की तो उन्हे तो मौके का फायदा उठाना ही था ।

Anonymous said...

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now a days typing in an Indian language is not a big task...recently i was searching for the user friendly Indian Language typing tool and found.. "quillapd". do u use the same....?

heard that it is much more superior than the Google's indic transliteration..!?

Expressing our views in our own mother tongue is a great feeling..and it is our duty too. so, save,protect,popularize and communicate in our own mother tongue...

try this, www.quillpad.in

Jai...Ho....

anuradha srivastav said...

सही कहा कठोर नियम व कानून के अभाव में किसी पर भी अंकुश लगा पाना असम्भव है। कभी-कभी लगता है कि वास्तव में चुनाव आयोग ही नहीं कोई सा भी आयोग ,संगठन सब कठपुतली मात्र हैं। हमारे देश में राजनीति इस कदर हावी है कि राज-दल सत्ता के लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं व आपसी खींच-तान से गुरेज़ नहीं करते। शर्मनाक स्थिति........

Deepranjan Kumar said...

bahut badhiya rashtra dharm se upar hota hai.gaddi ke leyai neta kuch bhi kar sakata hai.hamare taraf ek lokukti hai ....neta bin pendi ka lota....yahan yahi charitarth hota hai.

रंजनी कुमार झा (Ranjani Kumar Jha) said...

भाई,
राजनीती में नैतिक और अनैतिक नाम की कोई चीज नहीं होती और इसके लिए हमें किसी से ना ही पूछना पड़ेगा और ना ही जानना पड़ेगा, पत्रकार हमें राजनेता के प्रति जागरूक कभी नहीं बना सकते साले बिके हुए दलाल हैं सब, बाकि जहाँ तक बलबीर पुंज का प्रश्न है तो पुंज नमक यह सत्ता का दलाल जिसे असंवैधानिक बता रहा है वस्तुतः वो हमारे संविधान पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है और संविधान की मर्यादा को तोड़ने के माहिर खिलाडी ये राजनेता अपने इसी हुनर का इस्तेमाल करके पत्रकारों की दलाली से देश के आम जन की संवेदना का बलात्कार करते हैं.

अग्नि बाण said...

क्या नेता, क्या पत्रकार, सभी साले दल्ले हैं. वरुण सल्ला भूल गया उसका दादा भी मुसलमान ही था.

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