निश्चय ही साड़ी कई मायनों में खतरनाक, अधखुला, अनसिला पहनावा है। इस मुðे को मानवीय दृष्टि से देखना चाहिए। अगर स्त्रीत्व सिर्फ साड़ी पहनने से ही खिलता-खुलता है तो फिर पुरुषत्व को भी धोती में वापिस जाकर अपना अस्तित्व दोबारा से तलाशना चाहिए। काहे सूट-टाई लादे फिरते हो भाई।
March 17, 2009 11:21 ऍम
ये कमेन्ट हमारे देश के एक नागरिक ने चोकरे बाली पर किया है ,आप इस को क्या कहय्गे , , क्या हमारे समाज की स्त्रियों को ये बव्खूफ़ कही मिल जाए तो उन की साडीइस अभद्र भाषा को सहन कर पायगी ..................
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