अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के पुढ़ारी सरदार बूटासिंह के सपूत ने सिख होने की बात को गुरू गोविंद सिंह जी की बात से थोड़ा आगे ले जाना चाहा है तभी तो कटार रखने के स्थान पर आग्नेयास्त्र रखने में दिलचस्पी लेने लगा है। इस बात को मेहरबानी करके धार्मिकता से न जोड़ें क्योंकि ये मेरे और उनके बीच की बात है। नेता का बेटा अगर किसी जाल में फंसे मोटे बकरे से एकाधा करोड़ रुपया मांग लेता है कि उसे कटने से बचा लेगा क्योंकि कसाईबाड़ा तो पापाजी ही चलाते हैं तो इसमें बुरा क्या है। नेताओं के रिश्तेदारों को कानून के अंतर्गत ऐसी छूट का प्रावधान होना चाहिए कि इस तरह के छोटे-मोटे सौ-पचास करोड़ तक के मामलों के बीच में दलाली वगैरह करके निपटा सकें ताकि देश की अदालतों के ऊपर ज्यादा दबाव न पड़े क्योंकि वैसे भी लाखों मामले लम्बित पड़े रहते हैं। आपने देखा होगा आजकल तो किरन बेदी जी भी चूल्हे चौके के मुकदमें सुन कर फैसले दे कर अदालतों का बोझ हल्का कर रही हैं हो सकता है उनके इस सत्प्रयास के लिये उन्हें कई बार नोबल-शोबल पुरुस्कार मिल जाए। खैर..... मैं बूटा के बेटे से सहमत हूं कि अगर दस करोड़ के मामले में उसने एक करोड़ मांग कर मामला निपटवाना चाहा तो इसमें बुरा क्या है लेकिन भाई इतने वड्डे आदमी हैं तो चिरकुट सी पिस्तौल वगैरह क्यों रखते हैं उन्हें तो टैंक या राकेट लांचर तो कम से कम रखना ही चाहिये और सरकार को सोचना चाहिए कि आखिर इतने बड़े लोगों को भला लाइसेंस आदि की क्या जरूरत? ये सब औपचारिकताएं तो जनता के लिये होती है। बूटा जी! आपके चहेते चंद्रास्वामी जी से कोई जंतर-मंतर करवा लीजिए झंझट खत्त्त्त्त्त्त्त्त्म्म्म्म्म..........
जय जय भड़ास
1 comment:
भाई बड़े दिनों बाद आए और आते ही झूठा-बूटा खेलने लगे :)
आप कई लोगों के लिखने का तरीका और मेरा तरीका इतना मिलता जुलता है कि मेरे ऊपर आरोप आ जाता है कि एक ही आदमी कई नामों से लिख रहा है और सबको पेल रहा है :)
लगे रहिये इसी तरह
जय जय भड़ास
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