गुफ़रान जी अछा लगता है जब आप अपने नाम के साथ हमेशा लिखते हैं - आपका हमवतन भाई। कोई इन्कार है ही नहीं कि आप हमवतन हैं लेकिन भाई हैं या नहीं ये स्पष्ट कर लें। डा.रूपेश साहब के शब्दों में किसी भी देश (country) को राष्ट्र (nation) बनाने की प्रक्रिया बहुत लम्बी होती है। आपकी सोच जानना जरूरी है कि आप किस क्षेत्र के हैं राजनीति, कूटनीति, अवसरवादिता याअरईसाम्राज्यवाद के ब्रेनवाश करे हुए प्रतिनिधि। गुजरे हुए कल में क्या हुआ था उसका संदर्भ लिये विना वर्तमान में आज की समीक्षा कर पाना और आने वाले भविष्य के कल की रूपरेखा बना पाना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव है। लेकिन मैं फिर भी बिना किसी दुराग्रह के आपके साथ खड़ा हो रहा हूं । हम सिर्फ़ उस व्यवस्था की समीक्षा करें अपने नजरिए से जिस पर लोकतंत्र की राज्य व शासन की प्रणाली टिकी हुई है। आप राजनीति में हैं 'संविधान' की समीक्षा के बारे में क्या कहेंगे? मेहरबानी करके ये कह कर कि मैं कानूनविद नहीं हूं व यह विषय कानून का है, पल्ला मत झाड़ियेगा। कानून आपकी नजर में क्या है for the people, by the people, of the people यही या इसके अलावा कुछ अलग है? ये बात संविधान की आत्मा स्वीकारी गयी है। जनता के लिये, जनता के द्वारा, जनता का........अब सवाल है कि जनता कौन? तो जनता हैं हम सब सामान्य लोग(शायद आप राजनीति से जुड़े लोग न आते हों) । देश की पूरी तरक्की के लिये दिशा जनता को ही निर्धारित करनी होगी हमारी बेहतरी के लिये अमेरिका का मुंह ताकना तो सही नहीं मानेंगे आप भी। समान नागरिक अधिकारों की बात न हो कर देश में जाति , धर्म , लिंग के आधार पर विभाजन करा जाना क्या आपको संदेहास्पद नहीं लगता? जाति- वर्ण नकारने वाला हमारा कानून धर्म की बात आते ही संख्या की बात करके आप और हमें अलग अलग बांट देता है आप हो जाते हैं अल्पसंख्यक और मैं हो जाता हूं बहुसंख्यक; यानि या तो आप बेहिसाब बच्चे पैदा कर लीजिये अथवा मैं इस्लाम स्वीकार लूं तो हम इस झूठे लोकतंत्र में एक जैसे बन पाएंगे।
मैं आपको शासन सत्ता में उच्चतम स्थिति पर देखना चाहता हूं लेकिन ये भी अपेक्षा रखता हूं कि हम जिसे अपने ऊपर शासन करने के लिये चुन रहे हैं उसके विचार पारदर्शी हों वह ईमानदार हो न सिर्फ़ अपने धर्म के लिये बल्कि राष्ट्र के लिये भी यानि for the people, by the people, of the people वाली सोच पर खरा हो।
आपका हमवतन भाई
ब्रजेन्दु तिवारी
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