कल एक पत्रकार से मित्रता हुई,
परिचय के दौरान ही मैंने पुछा कि आप क्या करतीं हैं तो मोहतरमा ने जवाब दिया कि कलम की मजदूर हूँ।बातचीत आगे बढ़ी मगर ये वाक्य दिल में अटक से गए,
हिन्दी साहित्य के महानायक मुंशी प्रेमचंद के लिखे कलम के सिपाही मन मष्तिष्क में घूमते रहे, सोचता रहा और उलझता रहा।
क्या वास्तव में पत्रकार कलम के मजदूर हैं या कलम के सिपाही?
मोहतरमा के उत्तर से ये तो साबित हो गया की आज के पत्रकार कलम के सिपाही नहीं हैं मगर कलम के मजदूर,
अभी भी विचारों के झंझावत में उलझा हुआ हूं,
मजदूर तो हो मगर कलम के .........
कलम को दोष देना या अपने आपको?
कलम जिसने लोकतंत्र में लोक की आवाज बुलंद की,
हिटलर को सिर्फ कलम से डर लगता था !
और कलम को चलाने वाले इसके नौकर उफ्फ्फ्फ़
व्यवसायिकता की अंधी दौड़ में पत्रकारिता व्यवसायियों के हाथों की कठपुतली बन गयी है और कलम के सिपाही अपने कलम को इन व्यवसायियों के हाथों गिरवी रख चुके हैं तो नौकर तो लाला जी ए हुए और कलम को भी गुलाम बनाया,
कलम के सिपा..........
20 comments:
achcha lekh likha hai.......kabhi kabhi kuch shabd dil ko choo jate hain tabhi kuch na kuch likha jata hai.
आज के जमाने में सब कुछ बिकता है। इन्सान बिकता है,मजहब बिकता है - तो फिर कलम बिकने में इतना आश्चर्य क्यों? पत्रकारिता में ना पहले वाली मुल्यपरकता रह गयी है ना ही कोई गुणग्राहीता। इसलिये मलाल किस बात का ,व्यथा किस बात की।
आज के जमाने में सब कुछ बिकता है। इन्सान बिकता है,मजहब बिकता है - तो फिर कलम बिकने में इतना आश्चर्य क्यों? पत्रकारिता में ना पहले वाली मुल्यपरकता रह गयी है ना ही कोई गुणग्राहीता। इसलिये मलाल किस बात का ,व्यथा किस बात की।
ब्लॉग पर भी ऐसे मीडियाकर्मी कम ही दिखते हैं जो महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करते हों। सत्ता से लड़ने का साहस तो कलम का सिपाही ही दिखा सकता है। चुनाव के दौरान पैकेज पत्रकारिता के सवाल पर इनकी रहस्यमय चुप्पी देखकर हैरानी होती है...
bahoot achha laga ...........
kalam ke sipahi nahi ab to kalam ke majdoor hote hain....sipahiyo ki koi jarurat nahi hai jo majdoori kar sake usi ko kaam milta hai
कलम के सिपाही कभी के ठेर हो चुके है जो सिपाही दिखते से लगते है वो भी मजदूर ही है। वर्गीयवर्चस्ववादी सबसे पहला काम यही करते है। ज्ञान को मारो बाकी सब मर जायेगा। तो व्यापारी सबसे पहले ज्ञान को खत्म करने की फिराक मे रहता है। जबकि उसे पता नही होता कि यह सब पर भारी रहता "इट रूल्स" । कही से कोई ज्ञानी निकल आयेगा और उसे रोका नही जा सकता कोई भी तोप लाओं ।
Suman ji ,blog ke bare mi filhal aaj mi aap se sehmat hu.
सुयश जी ब्लॉग पर चीजो को तरलीकृत करने वाले लोग ज्यादा है जिनके पास विचार नही है इसलिये वे ध्यानभंग करने की कोशिस मे लगे रहते है। सेल्फ प्रमोशन मे ज्यादातर जबकि सेल्फ होता ही नही है।
भाई सुमन,
सहमति और असहमति दोनों,
ब्लॉग पर लोग ध्यानभंग करने की कोशिश में रहते हैं से सहमति नहीं हुआ जा सकता है.
rajneesh ji aajkal to kalam ke karigar ho gayen hain....
Dekhiye Neerajji.....ek bahut badi khai hai...aadarsh aur vastav ke bich mein....hakikat janleva ho sakti hai...Ghalib or Munshi premchand were great writer n poet respectively....lekin oonki nizi zindagi ke bare mein kabhi sochiye....Aur fir waqt ke saath bhi to chalana padega.....Premchandji aur Ghalib oos jamane mein apani zindagi apani tarah se... Read more jee sakte the....aaj nahi ho sakta....aapko apane aap ko balance karana padega....ya to samajik parivesh aapako aise samjaute karane ke liye vivash kar deti hai..shayd isiliye kahate hai sach kaduaa hota hai...
bhai sahib sach hi to hai ismein to koi shak hai hi nahi azaadi ke ladnewali kalam aaj sahukaron ki gulaam bankar rehgayi hai or kalam ke sipahi aaj majdur bankar reh gaye hain.
Rajneesh jee...aaj kal ladkiyo se khoob mitrata ho rahi hai..kya baat hai jee....kuchh khass...????? kabhi ladko ka bhi jikr kiya kijiye
kalam ke sipahi aaj gulaam bankar rehgaye hain............
कलम के सिपाही या कलम के मजदूर !.......hmmmm......achha sawaal hai...!!!
& Hasmukh is so right........well........
nice
भाई नि:संदेह कलम के मजदूर नहीं लाला जी के नौकर, कलम तो कब की बंधुआ मजदूर हो चुकी है.
प्रतिक्रिया के लिए सभी साथी का आभार
कलम की बेबसी कहें, कलम को चलने वालों ने ही तो ये अत्याचार किया है,
आज नि:संदेह कलम की धार कुंद हो गई है.
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