एक दंपत्ति की शादी को साठ वर्ष हो चुके थे। उनकी आपसी समझ इतनी अच्छी थी कि इन साठ वर्षों में उनमें कभी झगड़ा तक नहीं हुआ। वे एक दूजे से कभी कुछ भी छिपाते नहीं थे। हां, पत्नी के पास उसके मायके से लाया हुआ एक डब्बा था जो उसने अपने पति के सामने कभी खोला नहीं था। उस डब्बे में क्या है वह नहीं जानता था। कभी उसने जानने की कोशिश भी की तो पत्नी ने यह कह कर टाल दिया कि सही समय आने पर बता दूंगी।
आखिर एक दिन बुढ़िया बहुत बीमार हो गई और उसके बचने की आशा न रही। उसके पति को तभी खयाल आया कि उस डिब्बे का रहस्य जाना जाये। बुढ़िया बताने को राजी हो गई। पति ने जब उस डिब्बे को खोला तो उसमें हाथ से बुने हुये दो रूमाल और 50,000 रूपये निकले। उसने पत्नी से पूछा, यह सब क्या है। पत्नी ने बताया कि जब उसकी शादी हुई थी तो उसकी दादी मां ने उससे कहा था कि ससुराल में कभी किसी से झगड़ना नहीं । यदि कभी किसी पर क्रोध आये तो अपने हाथ से एक रूमाल बुनना और इस डिब्बे में रखना।
बूढ़े की आंखों में यह सोचकर खुशी के मारे आंसू आ गये कि उसकी पत्नी को साठ वर्षों के लम्बे वैवाहिक जीवन के दौरान सिर्फ दो बार ही क्रोध आया था । उसे अपनी पत्नी पर सचमुच गर्व हुआ।
खुद को संभाल कर उसने रूपयों के बारे में पूछा । इतनी बड़ी रकम तो उसने अपनी पत्नी को कभी दी ही नहीं थी, फिर ये कहां से आये?
''रूपये! वे तो मैंने रूमाल बेच बेच कर इकठ्ठे किये हैं ।'' पत्नी ने मासूमियत से जवाब दिया।
3 comments:
भाई यही जिंदगी है एक हाथ से बुनते जाओ दूसरे हाथ से आंसू पोछते जाओ..........
जय जय भड़ास
यह तो मालूम नहीं की इस कहानी को पढ़ कर हँसना चाहिये की सोचना ,परन्तु कहानी बहुत अछी लगी इस लिए बिना अनुमति लिए ही चुरा रहा हु !
विनोद भाई सभी भड़ासी आपको धन्यवाद करते हैं कि आपने भड़ास पर कुछ "चुराने" जैसा पाया। आपका स्वागत है हम सब भी इसी तरह दूसरों के चिट्ठों से अक्सर मार दिया करते हैं और गरियाए जाते है लेकिन शर्म-प्रूफ़ हो चुके हैं तो आप समझ सकते हैं कि हम बस खुश रहने के लिए ये सब करते हैम। एक बार फिर से आपका आभार(हो सकता है कि अमित भाई ने भी ये कहानी कहीं से मारी ही हो :)
जय हो जय हो अमित भाई की जय हो)
जय जय भड़ास
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