वो एक संवेदनशील चित्रकार भी हैं

एक खामोश सा लैंड स्केप जो न जाने क्या क्या कह रहा है। ये भाई की वो पेंटिंग है जिसमें उन्होंने पहली बार पेंट-ब्रश छुआ था।
इस मछली वाली की बिना चेहरे वाली तस्वीर को लेकर अक्सर मैं भाई को चिढ़ाती हूं कि क्या ये बिना चेहरे वाली मछली बेचने वाली बाई हमारी भाभी यानि आपकी कभी न हो पायी "ड्रीम गर्ल" है इस पर भाई अपने खास अंदाज़ में मुस्करा कर फिर अपने काम में जुट जाते हैं
इसे लेकर भी भाई को अक्सर चिढ़ाया जाता है कि आप कैसी-कैसी नंगी-पुंगी लड़कियों की कल्पना करा करते हैं (जबकि सच तो ये है कि ये एक आर्ट कम्पटीशन में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित चित्र है)
अनेक लोग डा.रूपेश श्रीवास्तव के बारे में सोचते हैं कि वे एक सनकी और बददिमाग किस्म के इंसान हैं जो अक्सर ही लोगों की आलोचना में लगे रहते हैं लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि वे एक अत्य्म्त संवेदनशील चित्रकार और कवि भी हैं। ये वो रचनाएं हैं जो उनके मित्रों द्वारा ले जाए जाने से बच गयी हैं।
जय जय भड़ास

3 comments:

मनोज द्विवेदी said...

AAJ APNE DOCTOR SAHAB KI EK NAYI VIDHA SE PARICHAY KARAYA..BAHUT BAHUT SUKRIYA.

कृष्णा शर्मा said...

rupesh jee ko hmesha hee main net pr kuchh nya krte hee patee hunn lgta hain nya krke purana bhulte hain

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

@ कृष्णा शर्मा
आपको ऐसा क्यों लगता है कि जब एक नन्हा अंकुर बड़ा होकर पौधा और पौधे से विशालकाय पेड़ बन जाता है तो वह अपनी जड़ों को भूल जाता है जबकि उस पेड़ का हर पत्ता, कलियां, फूल, फल सब नए ही आते रहते हैं?
जय जय भड़ास

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