भाई ब्रिजेन्द्र तिवारी मैंने आपका लेख पढ़ा मुझे आशा है की आप की सोच एक बेहतर समाज को बनाने में काफी मददगार होगी देखिये मै पहले भी कह चूका हूँ की मै इस लिए राजनीति में हूँ क्योंकि ये मुझे बचपन से पसंद है लेकिन इसका ये मतलब नहीं की मेरी सोच आम इन्सान या यूँ कहिये जनता से अलग है और न ही हम अपने समाज से अलग एक दूसरा समाज खडा करने की कोशिश कर रहे हैं हाँ ये ज़रूर हो सकता है की मेरे सोचने का तरीका अलग हो लेकिन हम सभी की लडाई बराबरी की है समाज में या कानून में या संविधान में हमें अलग से कुछ नहीं चाहिए लेकिन जो भी है वो ईमानदारी के साथ मिलना भी चाहिए ! और ब्रिजेन्द्र भाई मुझे कुछ बातें अजीब लगती हैं जब आप जैसा कोई अल्पसंख्यक शब्द को सीधा मुस्लमान से जोड़ देता है यहीं भ्रम की स्थिति पैदा होती है और समाज में जब भी ऐसी स्थिति आती है अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक आमने सामने होते हैं क्या हिन्दोस्तान में सिर्फ मुस्लमान ही अल्पसंख्यक हैं..............? 'ये एक बड़ा सवाल है' और इसका इतना प्रचार और प्रसार किया गया की आज जब भी अल्पसंख्यको की बात होती है तो बहोत से लोग इसको सिर्फ मुसलमानों से जोड़ कर देखते हैं..और माफ़ करियेगा कानून हमें अलग नहीं करता हमें अलग करता है 'ये बड़ा सवाल'.और जहाँ तक संविधान की समीक्षा की बात है तो ये तो हम सभी अपने कॉलेज के दिनों से मान करते आ रहे हैं की अब फिर से संविधान की समीक्षा होनी चाहिए लेकिन शायद अल्पसंख्यकों द्वारा चुनी सरकारों के अन्दर इतना हौसला नहीं है.........और एक बात मै हमेशा एक बात बोलता हूँ की जो अपने धर्म के प्रति ईमानदार है वो अपने देश अपने समाज के लिए भी ईमानदार होगा...
आपका हमवतन भाई .......गुफरान.....अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद,
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