मैंने स्टेशन पर पिल्लै इंजीनियरिंग कालेज के तीन युवकों को ये कहते सुना तो बड़ा विचित्र लगा कि एक तरफ़ तो सारे देश की हवा तंग है और दूसरी तरफ़ ये नादान स्वाइन फ़्लू को एन्ज्वाय करने की बात कर रहे हैं। चूंकि मैं भी ट्रेन के इंतजार में था तो उन्हीं बालकों के पास खड़ा हो गया ताकि उनकी बातें सुन सकूं और जान सकूं कि ये दिलेर जानलेवा बीमारी के भय को कैसे एन्ज्वाय करने की बात कर रहे हैं। ट्रेन आयी तो लोग उतरे और उसमें से एक लड़की को देख कर तीनों शरारत भरी मुस्कान लिये उसकी तरफ बढ़े, एक ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे लगबग डांटते हुए बोला, "काय ग... तू काय येड़ी-वेड़ी झालीस, काल ठाण्या ची गाड़ीत बसली होती.......।" तभी लड़की ने अपना हाथ छुड़ाया और हिंदी में बोली क्या मैं आपको जानती हूं? इतना कहते हुए उसने अपने चेहरे पर लगाया हुआ मास्क हटा दिया। इस पर तीनो शरारती लड़के नाटकीय अंदाज़ में माफ़ी मांगते हुए बोले कि सत्यानाश हो इस स्वाइन फ़्लू का... हमें लगा कि हमारी दोस्त आशा है। लड़की इन तीनो की शरारत समझ ही न पायी और कोई बात नहीं कह कर मुस्कराते हुए आगे बढ़ ली। ये तीनो फिर अगली गाड़ी के इंतजार में खड़े टाइम पास करने के लिये।
मुंबई में तो अधिकांश लोग रुमाल या मास्क लगा कर घूम रहे हैं जिसका ये दिलेर शरारती लड़के मजा ले रहे हैं, मुझसे ये कहते हुए कि अंकल एक दिन तो सबको मरना है तो क्यों न डर को भी एन्ज्वाय कर लिया जाए। पक्के भड़ासी हैं ये बालक जो मौत के डर का भी मजा ले रहे हैं और ऐसे मौके पर भी इन्हें शरारत सूझ रही है।
जय जय भड़ास
5 comments:
well said we indians are making a mockery of this disease
well said we indians are making a mockery of this disease
well said we indians are making a mockery of this disease
सच मच,
जीना इसी का नाम है,
जय जय भड़ास
AUR APKI PARKHI NAZAR INPAR PAD GAYI..JAI JAI BHADAS
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