राजीव करूणानिधि! तुमने डा।रूपेश के ब्लाग आयुषवेद पर जाकर क्या टिप्पणी करी थी वो तो तुम भी जानते हो और डा.साहब भी वरना इस तरह से तुम्हें हगने के बाद लीपा पोती करने की जरूरत न पड़ती। तुमने डा.साहब को उनके ब्लाग पर जाकर जो टिप्पणी करी थी उसके बाद मैंने पोस्ट लिखी थी क्योंकि मुझे भी तुम जैसे फटीचर एक चाय पर खबर लिखने वाले चिरकुट पत्रकार के मुंह लगने में दिलचस्पी नहीं है पता नहीं एड्स वगैरह हो गया तो मैं तो परेशान हो जाउंगी तुममें तो इतना स्वीकारने का साहस नहीं है कि दम से कह सको कि हां डा.रूपेश को गाली दी क्या उखाड़ लेगा वो मेरा....। लेकिन इतना स्वीकारने के लिये आत्मबल चाहिये तुम्हारे जैसा कीड़ा सत्य को गलती करने के बाद न मानने के झूठे दम्भ का पोषण करने में ही पूरी जिंदगी गुजार देता है। डा.साहब को उनकी अच्छाई का प्रमाणपत्र तुम जैसे मुखौटाधारियों से नहीं चाहिये पहले तुम अपने गलीजपन को दूर कर लो फिर उनके ऊपर कोई टीका-टिप्पणी करने की औकात होगी तुम्हारी। अगर साहस है तो जो लिखा था उसे उन्ही शब्दों में फिर से लिखो फिर देखो कि भड़ासी होने से क्या-क्या फर्क पड़ता है अविनाश दास जैसे मठाधीश को भी ऐसी ही गलतफहमी थी। मैं ही क्या, सारे भड़ासी इस बत को स्वीकारने में घबराते नहीं कि उनके भीतर भी बुराइयां है। अब जरा तुम अपनी औकात का ढोल पीटो कि मेरा क्या उखाड़ लोगे बेटा इधर तो कुछ है ही नहीं लेकिन अगर हम चाहें तो तुम्हारा जरूर उखाड़ देंगे। भाषा की पिपिहरी बजाने से तुम अच्छे हो गये तो बने रहो रजनीश झा,यशवंत सिंह, डा.रूपेश श्रीवास्तव को तो तुम अभी जानते हो क्योंकि तुमने अभी पत्रकारिता करते हुए ब्लागिंग का "सफर" शुरू करा है वरना भड़ास का यू.आर.एल. भी टाइप करने से पहले हजार बार सोचते लेकिन फिर भी तुम्हारी हिम्मत न होती।
हम सब बेहूदे, कुंठित, गन्दे, बुरे, गलीज़, गालीबाज, दारूबाज, अभद्र, नीच और हर तरह से बुरे हैं हमसे मत उलझो। तुम्हारी औकात का मापन करके तुम्हें बताएंगे कि तुम कितने बड़े पत्रकार और ब्लागर हो। आओ दिखाओ अपना "अच्छा" व्यक्तित्व......। एक बात याद रखना बेटा कि गाली मत देना क्योंकि तुम जैसे लोग गाली नहीं देते और देते हैं तो स्वीकारने की दम नहीं रखते। तुम कितने सलीकेदार हो और तुम्हारे क्या संस्कार हैं वो तो तुमने डा।साहब के ब्लाग पर जाकर अपनी टिप्पणी से बताया है अब जरा मेरे जैसे नाली के कीड़े की औकात मैं तुम्हें बताती रहूंगी जब तक तुम्हें सही करके तुम्हारा मुखौटा उतार कर तुम्हारा असली चेहरा सामने नहीं ले आती। तुम अब अपनी शराफत की वैचारिकता का गोबर हगो ताकि पता चले कि तुम खसिया बैल हो या सांड........आओ.....आओ .....सींग मारो हमें हम तुम्हारी पिछाड़ी में डंडा ठोंक रहे हैं।
नाम के आगे करुणानिधि लगाने का नाटक करते हो लेकिन एक बात साफगोई से मानते हो कि हमारे जैसे नाली के कीड़ॊ पर तुम्हे रहम नहीं आता क्योंकि तुम्हारी करुणा का भी नाटक अब समाप्त होने वाला है......शटर डाउन होने वाला है बेटा।
1 comment:
विरकुट लोग भी भड़ासियों पर थूक कर प्रसिद्ध होने का टोटका आजमा लेते हैं
जय जय भड़ास
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