''कठिन राहो से गुजरे बिना
मिल जाए , फूलो की घाटियाँ यह
मुमकिन नही।
बढ़ चलो ,हम राह पे , सोच मंजिल
निकट।
दृढ संकल्प से भरे , लक्ष्य मुमकिन नही ॥ ''
पर्वत श्रृंखलाओ के मध्य ,
पग धरे सोच कर ।
असफलताओ को धकेल कर
हम आगे बढे, मंजिल अपनी यह
अन्तिम नही।
दिनेश अवस्थी
इलाहाबाद बैंक
उन्नाव
1 comment:
सुमन भाई दिनेश जी की अन्य रचनाएं कब पढ़वा रहे हैं?
जय जय भड़ास
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