आजकल कई लोगों ने कहा कि क्या बात है भाई पुराने दिलजले भड़ासी किधर सो गये हैं न तो अजयमोहन, न ही रजनीश झा, न तो अब दीनबंधु दिख रहे हैं न ही मनीषा नारायण, न मुनेन्द्र सोनी...... क्या बात है कि फ़रहीन नाज़ भी गायब हैं मुनव्वर सुल्ताना(शायद अपने उर्दू पत्रा लंतरानी में व्यस्त होंगी)। यदा कदा कोई टपक जाता है?????? ये सवाल लेकर कई मेल आते हैं जो भड़ासियों के तेज़ तर्रार तेवर भरी प्रतिक्रियाओं के साथ रहना चाहते हैं।
इन सभी के लिये मेरा उत्तर ये है कि मैं इन सभी का प्रतिबिंब हूँ और जो लिख रहा हूँ वो सामने मुलाकातों में पता चलता है पत्रा पर आकर लिख जाना ही भड़ास का स्वरूप नहीं है और हमारी भड़ास तो रचनात्मक हो ये दर्शन है इसका सो हम सब निजी तौर पर मिलते मिलाते रहते हैं....तनी हुई भौंहे, सुर्ख हुई आँख और कस कर बंधी हुई मुट्ठी के साथ दाँतों की किटकिटाहट भड़ास के स्वरूप में ऑफ़लाइन देखने को मिल रही है क्योंकि हम पा रहे हैं कि हम ऑन लाइन के साथ ही ऑफ़लाइन भी जब जिंदगी को देखते हैं तो उस समय लिखना दिमाग में नहीं आता है मन करता है कि लतिया-जुतिया दिया जाए और जब इस तरीके से कारगर होकर अव्यवस्था बदल जाए तो फिर उसका विवरण भड़ास पर दिया जाए लेकिन फिलहाल बस सबकुछ ऐसा ही मचर-मचर चल रहा है। सब देख तो रहे हैं कि कानून है लेकिन बनाने वाले तक नहीं मानते, कानून है पर उसे मनवाने वाले ही उसे निचोड़ रहे हैं ऐसे में कौन इंटरनेट पर लिखाई करेगा यही वजह है कि अब हम कम ही लिख पा रहे हैं लेकिन हमारी मुलाकातों के बाद हमने निर्धारित करा है कि रोज ही एक न एक भड़ासी अपनी भड़ास पत्रे पर अंकित-टंकित जरूर करेगा।
जय जय भड़ास
4 comments:
nice
main bhi purane lekhon aur lekhakon ko bahot miss karti hoon Assha hai sab jaldi hi kuchh likhenge :)
सब जानते हैं कि भड़ासियों के नाम और चेहरे बदल जाएंगे लेकिन भड़ास अमर हो चुका है न ही वो नींद में है न ही उसे अब मृत्यु आएगी। हम सब तो मुंबई को सिकोड़ चुके हैं अक्सर ही घर आना जाना कर लिया करते हैं। यहाँ तक कि बादशाह बासित(जिनका आप जिक्र भूल गये शायद) वो तक मुझसे मिल लेते हैं मेरे बेटे पार्थ से मिलने आते हैं तो:)
जय जय भड़ास
हमने निर्धारित करा है कि रोज ही एक न एक भड़ासी अपनी भड़ास पत्रे पर अंकित-टंकित जरूर करेगा
हां जी यह सही रहेगा
सबको 8-10 दिन में एक बार तो स्थिति, उपस्थिति और अपने विचार बताने ही चाहियें।
प्रणाम
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