मोदी एस आई टी के समक्ष पेश, राजनीति शुरू !!


दंगे भड़काने के आरोप में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी आज विशेष जांच दल यानी एसआईटी के दफ्तर में पेश हुए और 2002 के दंगों के सिलसिले में उनसे पहली बार पूछताछ हुई. शनिवार दोपहर मोदी पूछताछ के लिए पहुंचे.


मोदी भारत के पहले मुख्यमंत्री हैं, जिनसे पद पर रहते हुए नरसंहार के आरोपों में पूछताछ हो रही है. 59 साल के नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल पर आरोप है कि उन्होंने 2002 में गुजरात में दंगे भड़काए, जिसमें 1000 से ज्यादा लोगों की जान गई.
गांधीनगर में मोदी जिस वक्त एसआईटी के दफ्तर पहुंचे, वहां एसआईटी प्रमुख आरके राघवन नहीं थे. समझा जाता है कि एसआईटी के सदस्य एके मल्होत्रा ही मोदी से पूछताछ कर रहे हैं. सुबह से एसआईटी के आस पास मीडिया का हुजूम लग गया था और इस वजह से वहां सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए

एसआईटी ने मोदी को गुलबर्ग सोसाइटी केस में पूछताछ के लिए बुलाया है, जहां दंगों में कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोगों की हत्या कर दी गई थी. एहसान जाफरी को जिन्दा जला दिया गया था. उनकी पत्नी जकिया जाफरी ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2002 के दंगों को भड़काया और अपने अफसरों को ताकीद कर रखी थी कि वे कोई कदम न उठाएं.
सामाजिक कार्यकर्ता और खुले रूप से मोदी की विरोधी तीस्ता सेतलवाड ने मोदी के अदालत में पेश होने का स्वागत किया. उन्होंने कहा, "लोकतंत्र के लिए आज एक अहम दिन है, जब सत्ता में रहते हुए एक मुख्यमंत्री को पूछताछ के लिए पेश होना पड़ा. हालांकि न्याय में बाधा पहुंचाने की कई कोशिशें की गईं."
गुजरात सरकार के प्रवक्ता जयनारायण व्यास ने इस बात को खारिज कर दिया कि मोदी के पेश होने से उनकी सरकार को धक्का लगा है. उन्होंने कहा, "हमने हमेशा से कहा है कि वह कानून का पालन करेंगे लेकिन इसका बतंगड़ बहुत बनाया जाता है. जहां तक बीजेपी सरकार या मोदी का सवाल है, किसी को कोई झटका नहीं लगा है."

मोदी की एसआईटी में पेशी बेहद अहम है क्योंकि इससे पहले भारत में कभी भी किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री को इस तरह के आरोपों के लिए पेश नहीं होना पड़ा था. इससे पहले पिछले हफ्ते उस वक्त काफी ड्रामा हुआ था, जब एसआईटी ने उन्हें 21 मार्च को पेश होने के लिए कहा था और मोदी उस दिन एसआईटी के दफ्तर नहीं गए.
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों की जांच के लिए विशेष जांच दल यानी एसआईटी का गठन किया था, हालांकि गुजरात के बीजेपी विधायक इसको चुनौती दे चुके हैं, जिस पर अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है.

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