किसी भी विचार को जो कि निहायत ही निजी हो और व्यक्तिगत स्वार्थ से भरा हो एक विचारधारा के रूप में स्थापित करने में मीडिया का जो कार्य है वह बेहद महत्त्वपूर्ण होता है। किसी भी हिंदू हिंदू-मुसलमान-मुसलमान चिल्ला कर वोट बैंक बटोरने वाले कमीने राजनेता को किस तरह किसी समुदाय में उस समुदाय का हितैषी जता कर स्थापित करना है ये काम मीडिया बखूबी करता है। नेता जी के निहित स्वार्थ जो जनहित बता कर मासूम जनता के दिलों में समाचार की शक्ल में रोज पेला जाता है। समीक्षा और आलोचना तो इन्हें बर्दाश्त नहीं होती क्योंकि ये स्वयं को ईश्वर से भी बड़ा मानते हैं इन्हें भ्रम रहता है कि यदि कोई इन्हें इनकी कमियाँ बताएगा तो ये उसे नेस्तनाबूद करने की ताकत रखते हैं जोकि कई बार हो भी जाता है कि कार्यपालिका-विधायिका-न्यायपालिका-मीडिया में मौजूद भड़वों की आपसी सांठगांठ से सही जनहित करने वाले की जुबान काट दी जाती है लेकिन चीख तो रुकती ही नहीं निकल ही पड़ती है। जनता को ज्यादा समय तक धोखा नहीं दिया जा सकता। कई बार ये प्रतिक्रिया स्वतःस्फूर्त जनांदोलन के रूप में निकल पड़ता है।
भड़ासियों ने विचार करा है कि अब हम मीडिया पर नजर रखेंगे,उनकी स्वस्थ समीक्षा और निडर आलोचना करेंगे जिससे जो उखाड़ते बने उखाड़ ले। जब तक इन्हें इनकी दुर्गंध नहीं सूंघने को बाध्य करा जाएगा ये ऐसे ही गंधवाते रहेंगे। निर्णय है कि जिसे समीक्षा और आलोचना अपनी कम अक़्ली के चलते निंदा महसूस हो उसे भड़ास का मंच विमर्श के लिये प्रदान कर दिया जाए जिससे कि हम भड़ास के सही लोकतांत्रिक स्वरूप को मजबूत कर सकें। तो देखिये हमारा नया जतन...... जो कि मीडिया (अखबार, टीवी, सिनेमा, विज्ञापन, रेडियो आदि) सभी को बारीकी से छानेगा और खिलाए जाने वाले समाचारों में मिलावट के कंकड़ों को सामने लाएगा जो कि आप खा तो लेते हैं लेकिन बाद में कभी आपके समाज की देह के मूत्राशय में कभी पित्ताशय में पथरी बन कर कष्ट देते ज़ार-ज़ार रुलाते हैं।
जय जय भड़ास
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