मैं भी उस समय दिल्ली में ही था, अचानक किसी कार्यवश कनाट पैलेस जाने को हुआ, जन पथ के भीड़ में ऑटो पर था की एक अबोध बालिका कलम को बेचने के लिए ऑटो में सवार हो गयी की कलम ले लो सिर्फ दस रूपये का है। मेरे साथ मेरी एक मित्र भी थी जिन्होंने उसके कलम के प्रस्ताव को सिरे से ख़ारिज करते हुए आगे जाने को बोल दिया, मगर अबोध बालिका के चेहरे की मासूमियत और महिला आरक्षण के जद्दोजहद में उलझा एक कलम का पैकेट ले लिए और छुटकी अपने पैसे ले कर उड़न छू हो गये संभवतः किसी और ग्राहक के लिए जो उसके और कलम को खरीद सके !!
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अगले ही दिन दिल्ली से भोपाल के लिए निकल गया, दोपहर दो चाय के लिए (संग ही सुट्टा भी) के लिए भरि गरमी में चाय के दूकान पर आया तो इस नन्ही सी छुटकी से भेंट हुआ। अपने में मगन हाथ में गन्ना, बस मुस्कराहट और भोलेपन ने मन मोह लिया।
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बिटिया से थोडा सा खेलने के बाद वापिस भारी मन से अपने कार्य की और रवाना हो गया मगर विचारों का झंझावत जो की थमने का नाम ही नहीं ले रहा था की महिला आरक्षण में इन बच्चियों को क्या मिलने वाला है ? मुलायम और लालू सही तो कह रहे हैं , क्या आरक्षण गिरिजा व्यास, शीला दीक्षित, रेणुका चौधरी या फिर अंग्रेजी में गिटिर पिटिर करती जींस वाली महिलायें, यहाँ तक की मीडिया का भी इस मुद्दे पर अपनी रोटी सेंकना मानो लोकतंत्र की गरिमा को बाजार पर बिठा दिया गया हो।
क्या आरक्षण का दायरा मतलब सिर्फ इतना ही रह गया है। हमने पहले भी देखा है की मंडल के नाम पर कितनी बलि हुई फायदा किसे मिला?
सोचनीय हूँ उत्तर नहीं मिल रहा है मगर वोट और सरकार के इर्द गिर्द घुमती राजनीति में फैसला लेने की अकर्मण्यता का खामियाजा सिर्फ और सिर्फ आम लोगों को ही तो भुगतना है ।
क्या ये सिर्फ अनकही चीखें हैं ???
1 comment:
आरक्षण का यदि सही इस्तेमाल किया जाय तब तो अच्छी बात है....... पर यह आरक्षण इस देश को कहाँ ले जाएगी ......मालुम नहीं !
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