मुजफ्फरनगर जिले की खतोली तहसील में स्थित थाना मंसूरपुर के ग्राम पोर बालियान में एक मस्जिद को गिरा कर उस पर पुलिस चौकी स्थापित करने का मामला चर्चा में आया है। समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार को संज्ञान में लेते हुए उ0प्र0 अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष एस0एम0ए0 काजमी ने मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी से रिपोर्ट भी तलब कर ली है। पुलिस का कहना है कि उसने ग्राम पंचायत की भूमि पर नाजायज तौर पर बनी इमारत से उसे रिक्त कराया है। जबकि मुस्लिम पक्ष के अनुसार ग्राम पंचायत की भूमि का पट्टा एक मुसलमान शरीफ को हुआ था जिसके मरणोपरांत उसके लड़के ने इस पर मस्जिद दारूल उलूम देवबन्द से फतवा लेने के बाद बनवाई थी।
यह बात बिल्कुल दुरूस्त है कि किसी विवादित भूमि पर मस्जिद नहीं बनवाई जा सकती है मस्जिद के लिए शरई हुक्म है कि वह भूमि हर विवाद से पाक-साफ हो और उसे ईश्वर के नाम पर वक्फ किया गया हो। मुजफ्फर नगर की मस्जिद यदि ग्राम समाज की भूमि पर धोखाधड़ी से बनवाई गई थी तो वह मस्जिद की ईमारत तो हो सकती है अल्लाह का इबादतगाह नहीं।
मुजफ्फरनगर की तहसील खतोली के ग्राम पोर बालियान की यह मस्जिद जो उस क्षेत्र के एक पुलिस अधिकारी राजू मल्होत्रा ने बुलडोजर चलवा कर उस पर पुलिस चैकी का बोर्ड लगवाने का कार्य बगैर जिला प्रशासन के किया जैसा कि जिलाधिकारी संतोष कुमार यादव के बयान से जाहिर है जो समाचार पत्रों में आया। विवादित भूमि का पट्टा ग्राम प्रधान द्वारा वर्ष 1967 में गांव के एक भूमिहीन शरीफ अहमद के नाम हुआ था जिनके मरने के पश्चात उनके वारिस पुत्र द्वारा इस पर मस्जिद का निर्माण बाकायदा दारूल उलूम देवबंद से फतवा हासिल कर करवाया था। गांव के लोग उस पर वर्षों से नमाज अदा करते चले आ रहे थें।
यह सही है कि सार्वजनिक भूमि पर बगैर अनुमति के केाई धार्मिक स्थल नहीं निर्मित किया जाना चाहिए और जिसको गंभीरता से लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने देश के सभी प्रांतों से सितम्बर 2009 के पूर्व में सार्वजनिक भूमि पर निर्मित धार्मिक स्थलों को चिंहांकित करने के निर्देश भी दिए हैं।
परन्तु पुलिस प्रदेश के हर थाने व पुलिस लाइन में अवैध रूप से बनाए गये मंदिरों के बारे में क्या कहेगी? क्या यह नेक काम अपने स्वयं के घर से नही प्रारम्भ कर सकती थी? अकेले मस्जिद पर कार्यवाई करना क्या न्यायोचित है?
आज प्रदेश में मस्जिद बनाने के लिए मुसलमान डरता है वक्फ बोर्ड जिसका अपर सर्वे आयुक्त स्वयं जिले का हाकिम यानि जिलाधिकारी होता है वह मस्जिद के नाम पर अनुमति यह कहकर नहीं देता कि इससे शांति भंग होने की संभावना उत्पन्न हो सकती है। मुसलमानों को साफ तौर पर संविधान में दी गई उनकी धार्मिक आजादी का उल्लंघन है परन्तु मंदिर बनाने के लिए कोई रोक नहीं चाहे वह थाना हो या कोतवाली या तहसील परिसर।
कहने को तो भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है परन्तु धर्म निरपेक्षता का अनुसरण करने के क्या यही तौर तरीके हैं कि देश के दूसरे नम्बर के बहुसंख्यक जिन्हें अल्पसंख्यक कहकर उन्हें विशेष अधिकार का दर्जा भी दिया गया है उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर इस प्रकार से आघात किया जाये। उनकी सामाजिक व शैक्षिक उन्नति पर सम्प्रदायिक भावना से ओत प्रोत होकर अंकुश लगाया जाए यह कहाँ का इंसाफ है क्या खुफिया तौर पर प्रदेश में यह हिन्दुवत्व वाली विचारधारा के एजेण्डे का हिस्सा तो नहीं।
मो0 तारिक खान
1 comment:
शायद इसी को बिल्कुल सरल शब्दों में हरामीपन,सुअरपन कहा जा सकता है। हिन्दुत्त्व यानि ब्राह्मणत्त्व, क्षत्रियत्त्व,बनियत्त्व और साथ में चमारत्त्व... साला कुल मिला कर चूतियापा है जिसे कुछ शातिर लोग अपने भले के लिए इस्तेमाल करते रहते हैं। पता नहीं कब इंसानियत का पेट भरेगा इस तरह की खुराक से जबकि पता है कि धर्म और मजहब के निवाले सिर्फ़ जुलाब ही दे रहे हैं जब से तुम विकसित होने का एहसास कर रहे हो....
जय जय भड़ास
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