सुमन भाईसाहब,तारिक भाई !! कब देश की इस विषमता की होलिका भस्म होगी?

सुमन जी बड़ा दुःख होता है ये देख कर कि राज्य अपने नागरिक को इस तरह सताता है। आखिर ये कौन सी प्रणाली है और यदि इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाएं तो आपके कानून के मुताबिक वह सरकार से बगावत है और सजा हो जाएगी तो ऐसे में करा क्या जाए? अभी हम लोग लंतरानी की टीम लेकर पुणे गए थे तो यकीन मानिये कि जवान मुस्लिम लड़कों में खौफ़ दिखता है क्योंकि पुलिस ने इकतालिस मुस्लिम लड़कों को मात्र संदेह में उठा लिया है और आगे क्या होता है आप जानते हैं..... घर के बुजुर्ग आंखों में आंसू भर कर सुनाते हैं कि क्या हुआ। आप खुद सोचिए कि कैसा लगता है कि हमें हमारे ही देश में जबरन आतंकवादी,नक्सलवादी करार देकर जेल में ठूंस दिया जाए तो क्या हल है इस विषम परिस्थिति का???? कुछ घबरा कर दुबई या अरब चले जाते हैं कुछ डिप्रेशन में चले जाते हैं और रहते हैं ताजिन्दगी मरणासन्न। सामाजिक तौर पर तो यदि पुलिस एक बार ले जाए तो समझिये कि आपकी आतंकवादी ही हो गये पड़ोसियों की नजर में..... ये क्या हो रहा है तारिक भाई कविता लिख रहे हैं और हमारी हालत तो मनोरोगियों जैसी हो रही है ये देख देख कर। कई बार तो लगता है कि सरकार या ये शासन प्रणाली स्वयं ही अतिरेकी निर्णय तक लोगों को पहुंचा देती है कोई क्यों अपना अपमान सहेगा? परिस्थिति विषम होती जा रही है। गोवा में कुछ हो तो हिंदू आतंकी कह कर बंद कर दो, बिहार यू.पी. बंगाल आदि में कुछ हो तो नक्सलवादी कह कर बंद कर दो और महाराष्ट्र या गुजरात में कुछ हो तो कुछ मुस्लिम लड़के पकड़ कर बंद कर दो बस हो गया केस खत्म फ़िर कुछ समय बाद देश का अतिसक्रिय मीडिया आपको चीख चीख कर बता देता है कि अमुक घटना की जिम्मेदारी पाकिस्तान के आतंकी संगठन "अल-मादर’ या अल-फ़ादर ने ले ली है और गिरफ़्तार लोग उसी संगठन के सक्रिय सदस्य हैं और चलता रहता है पचासों साल तक मुकदमा और हमारा भाई या बेटा अंदर जेल में एड़ियां रगड़ते हुए बूढ़ा हो जाता है। ये क्या हो रहा है सुमन जी???? सिर्फ़ समस्या की तरफ़ उंगली दिखाने से काम नहीं चल रहा है कोई कारगर हल जल्द ही न तलाशा गया तो सर्वनाश हो जाएगा स्थितियां विस्फ़ोटक होती जा रही हैं। कब देश की इस विषमता की होलिका भस्म होगी और हम एक बार फिर नयी रिवायतों से होली मना सकेंगे?
जय जय भड़ास

2 comments:

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

बात हिंदू या मुस्लिम लड़कों की नहीं है मुझे लगता है कि जिस जगह आप सामंती विचारधारा में प्रतिरोध के तौर पर देखे जाने लगते हैं तो आपको उखाड़ने का ये कथित "कानूनी"मार्ग अपनाया जाता है। सुमन भाई इस बात की गंभीरता को समझ रहे हैं तभी तो लिखते रहते हैं वे जानते हैं कि इस दिशा में आने वाले बदलावों की गति अत्यंत धीमी होती है लेकिन सतत प्रयत्न करे जाने चाहिये। रिवायतें बदलेंगी यही तो उम्मीद है कि विषमता की होलिका भस्म हो जाएगी इसी विचार से भड़ासी प्रह्लाद भी अग्निकुंड में बैठे हैं
जय जय भड़ास

अजय मोहन said...

जो हो रहा है वह एक बहुत बड़े बदलाव का ही संकेत है कि इस शासन प्रणाली की स्पष्ट असफ़लता दिखाई दे रही है, जनप्रतिनिधि ऊपर जाकर खुद ही शोषक बन जाते हैं और जो मुखालफ़त करे उसे प्रताड़ित करते हैं। हम पुलिस,राजनेता, मीडिया, सरकारी अधिकारी किसी को दोष न दें बात तो मात्र प्रवृत्ति ही है इन जगहों पर जाने वाले लोग हमारे बीच में से ही जाते हैं किसी पेड़ से नहीं टपकते हैं। बात हिंदू और मुसलमान से अलग हो चुकी है। आपने जो बात पुणे की लिखी वैसी ही बात गोवा में हिंदू लड़कों के साथ है
जय जय भड़ास

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