संसदीय समिति ने खराब खाद्यान्न प्रबंधन को कीमतों में वृद्धि के लिए जिम्मेदार ठहराया !!

सूखा प्रबंधन, खाद्यान्न उत्पादन और मूल्य स्थिति पर एक संसदीय समिति ने खराब खाद्यान्न प्रबंधन को कीमतों में वृद्धि के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए वायदा कारोबार रोकने तथा चावल, चीनी, गेहूं का निर्यात बंद करने की सिफारिश की है।

संसद की आकलन समिति के अध्यक्ष फ्रांसिस्को सार्डिन्हा ने कहा समिति ने सूखा प्रबंधन, खाद्यान्न उत्पादन और मूल्य स्थिति पर अपनी रिपोर्ट में वायदा कारोबार रोकने तथा चावल, चीनी, गेहूं का निर्यात बंद करने और आयातित अनाज का बंदरगाह से अपने गंतव्य तक बिना समय गंवाये पहुंचाना सुनिश्चित करने की व्यवस्था करने जैसी सिफारिश की है।

उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की सलाह भी दी गई है। उन्होंने कहा अनाज की कालाबाजारी कीमतों में वृद्धि का एक प्रमुख कारण है क्योंकि आयात से पहले आवश्यक वस्तुओं की कोई कमी नहीं थी लेकिन उस समय भी कीमतें बहुत अधिक थी।

सार्डिन्हा ने कहा कि यह खराब खाद्यान्न प्रबंधन का नतीजा था। रिपोर्ट में इसको तत्काल व्यवस्थित करने की सिफारिश की गई है। गौरतलब है कि संसद की सूखा प्रबंधन, खाद्यान्न उत्पादन और मूल्य स्थिति पर आकलन समिति की रिपोर्ट 24 नवंबर 2009 को पेश की गई थी।

संसदीय समिति की रिपोर्ट पर सरकार की गंभीरता के बारे में एक प्रश्न के उत्तर में सार्डिन्हा ने कहा समिति की रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने कीमतों की नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाये हैं।

सार्डिन्हा ने कहा कि रिपोर्ट में हमने इस बात का जिक्र किया है कि खाद्यान्न भंडार के कारण ही हम स्थिति को काबू में रखने में सफल रहे। उन्होंने कहा कि समिति ने अपनी सिफारिशों में भविष्य में सूखे जैसी स्थिति से निपटने के लिए एक रूप रेखा भी पेश की है।

उन्होंने कहा रिपोर्ट में फसल चक्र और खेती से जुड़े अन्य आयामों का अन्न उत्पादन और उसकी उपलब्धता पर पड़ने वाले प्रभावों का भी जिक्र किया गया है।

समिति की बैठकों के दौरान मंत्रालय के कामकाज के बारे में एक प्रश्न के उत्तर में सार्डिन्हा ने कहा कि मंत्रालयों का कामकाज ठीक है लेकिन इसे और बेहतर बनाया जा सकता है।

सार्डिन्हा ने कहा मेरे विचार से सरकार अभी भी संसदीय समितियों की रिपोर्टों और सिफारिशों को गंभीरता से लेती है। लेकिन यह विषयों पर निर्भर हो सकता है। उन्होंने कहा कि सभी समितियां सोचती हैं कि उनकी सिफारिशें महत्वपूर्ण है लेकिन उन सिफारिशों का आकलन करने के बाद उन पर अमल करना सरकार के अधिकार क्षेत्र के तहत आता है।

संसदीय समितियों की रिपोर्ट को सार्वजनिक किये जाने के बारे में एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा यह नियमों के अनुकूल नहीं होगा, लेकिन मेरे विचार से रिपोर्ट सौंपे जाने के तत्काल बाद इसे सार्वजनिक किया जा सकता है।

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