यशवंत सिंह शराब के शौकीन, चरित्र के लिबलिबे, मुखौटे के मजबूत और दूसरी तरफ उन्हें उनकी सारी खा़मियों के साथ स्वीकार कर चुके डा.रूपेश श्रीवास्तव; अब तक यशवंत सिंह ने अपने अनुभवों से जो सीखा था वो ये था कि जो मिले उसे इस्तेमाल कर लो उससे जितना फायदा हो सके उठा लो क्योंकि पता नहीं कब साथ छूट जाए। डा.रूपेश श्रीवास्तव और यशवंत सिंह के व्यक्तित्त्व आपस में घर्षण कर रहे थे एक दूसरे को खुद जैसा बना पाने के लिये। इसी बीच भड़ास पर गूगल की तरफ से एडसेंस लगाया गया यानि कि आय का एक बहुत छोटा सा स्रोत भड़ास पर जोड़ा गया। डा.रूपेश श्रीवास्तव व सभी भड़ासियों ने सहर्ष इस बात का स्वागत करा। डा.रूपेश श्रीवास्तव जो कि यशवंत सिंह की तरफ से अब तक दुनिया को भड़ास के दूसरे माडरेटर बताए जा रहे थे, उन्होंने अपने स्वाभाव के अनुसार एक सुझाव दिया कि भड़ास से जुड़े भड़ासी हिंदी की गांव-देहात की पट्टी पर रहने वाले लोग हैं जो कि पचास-साठ रुपए प्रति घंटे खर्च करके भड़ास पर पोस्ट लिखा करते हैं इसलिये भड़ास पर होने वाली आय को इन भड़ासियों में उनकी सक्रियता के आधार पर वितरित कर दिया जाए; भड़ास किसी एक का न रह कर इन सभी का समेकित प्रयास है। बस यहां से यशवंत सिंह के कान खड़े हो गये कि ये आदमी पैसे का लोभी नहीं है इसके रहते वो अपने बाजारी सपने पूरे नहीं कर सकते। आप सबको बताती चलूं कि यशवंत सिंह ने डा.रूपेश श्रीवास्तव को कभी भड़ास का माडरेटर बनाया ही नहीं था वो बस उनका नाम इस्तेमाल कर रहे थे।
इसी कशमकश के बीच यशवंत सिंह ने अपने बाजारू लालागिरी के स्वभाव के चलते भड़ास की दिन दूनी रात चौगुनी होती प्रसिद्धि के टके कराने के लिए "भड़ास4मीडिया" नाम का एक पोर्टल शुरू करा।
आगे जारी........
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जय जय भड़ास
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