इनसे मिलये ये हैं कीर्ति झा आजाद (चौंकिए नहीं ये झा ही हैं) और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के सुपुत्र भी ! पिता के राजनितिक छवि का फायदा कि सांसद भी हैं और गुजरे ज़माने के ऐसे क्रिकेटर जो अपने ज़माने के लोगों को भी याद नहीं।
दिल्ली के फिरोज शाह कोटला में मैच का रद्द होना भारत के लिए शर्मशार करने वाली स्थिति थी और हम वैश्विक स्तर पर शर्मशार हुए भी मगर इस सबसे ऊपर जो राजनीति हमारे देश के राजनेताओं ने क्रिकेट के नाम पर खेली वो ना सिर्फ क्रिकेट अपितु पुरे भारत को अलग से शर्मशार करता है मगर बात यहाँ कीर्ति आज़ाद की।
राजनीति में आने के बाद लोग नौटकिये होते ही हैं मगर एक खिलाडी से हमेशा सभी क्षेत्रों में खेलभावना की अपेक्षा रहती है, कपिल देव और सचिन तेंदुलकर से बड़ा कोई उदाहरण नहीं हो सकता की खिलाडी कैसा होता है। इन महाशय को झा लगाने पर शर्म आता है, बिहार कभी गए नहीं मगर अपने पिता की महत्वाकांक्षा के लिए शादी जरुर दरभंगा में की। परिवेश ऐसा अपन्याया की मानों मिथिला के प्रतिनिधित्वकर्ता हों मगर इन सबसे इतर स्थानीय राजनीति से लेकर केंद्र तक में पिता के पड़ चिन्हों पर चलते हुए स्वहित और भ्रष्टाचार का तांडव किया। अपने पहले ही संसदीय कार्यकाल में दरभंगा में सड़कों का अम्बार लगा दिया, जम कर पैसे खर्चे पूरा शहर नए षड्कों से पट गया मगर ये साल भर के लिए ही था क्यूंकि सभी नए सड़क एक साल बाद ही अपने पुराने हालत में थे ( कमीशन की उगाही जितनी हो सके उतनी करो) ।
बी सी सी आई ने राजनैतिक हित और निति के करण बिहार क्रिकेट एसोसिअशन की मान्यता समाप्त कर दी, सालों बिहार के बच्चे क्रिकेट के अंधी गलियों में दौड़ते रहे और श्रीमान आज़ाद यहाँ भी अपनी राजनितिक महत्वाकांक्षा के कारण बिहार क्रिकेट को देश के पटल पर आने देने में सबसे बड़े रोड़ा बने रहे। जब बी सी सी आई ने वापस मान्यता दी तो आज़ाद महोदय ने बिहार क्रिकेट एसोशिअशन के अस्तित्व को लेकर ही लडाई छेद दी, कमोबेश इन्हें क्रिकेट या युवाओं से ज्यादा अपने राजनितिक स्वार्थ की चिंता रही जिसके करण बिहार के क्रिकेट खिलाड़ी सालों तक राष्ट्रीय पटल पर आ ही नहीं सके।
कोटला विवाद और डी डी सी ए बैठक के तुरंत बाद आज़ाद ने आरोप लगाया की डी डी सी ने उनको अपमानित किया, हाथापाई की और यहाँ सभी राजनैतिक स्वार्थ के लिए क्रिकेट के साथ खेल रहे हैं यहाँ यह कहता चलूँ की आज़ाद भाजपा के सांसद हैं और भाजपा के ही कद्दावर नेता अरुण जेटली इसके अध्यक्ष सो जेटली को पाक साफ़ और एसोशिअशन से ऊपर कह कर भाजपा में अपनी इमानदारी साबित की।
आज जब क्रिकेट अपने शीर्ष पर है और पुरे भारतवाशी के ह्रदय में बसता है तो बहुत से लोग इसकी लोकप्रियता को भुनाने चले आते हैं उन्ही में से एक हैं हमारे ये आज़ाद साहब। १९८३ विश्वकप विजेता टीम का हिस्सा ना होते तो इनको क्रिकेटर मानने वाला शायद ही कोई मिलता।
तो क्या भारतीय क्रिकेट की दिशा और दशा पर राजनीति होती ही रहेगी और राजनेता अपनी अपनी महत्वाकांक्षा के लिए हमारे क्रिकेट को बेचते रहेंगे।
4 comments:
इन नेताओं ने एक भी क्षेत्र को राजनीति और स्वार्थ से परे नहीं छोड़ा है . देशकी छवि चाहे धूमिल क्यों न हो .
नये साल की आप को हर्दिक शुभकामनाये
RAJNISH BHAI HAPPY NEW YEAR 2010
जिन्होने अपने कॅरियर मैं कुछ नही किया आज वोही मज़े कर रहे है, टीवी शो मैं यही लोग आपको बेतुके कॉमेंट करते हुए मिलेगे. अपनी राय ऐसे देंगे जैसे क्रिकेट ज्ञान इन पर ही ख़तम है जिन्हे क्रिकेट की एबीसी नही मालूम वो मज़े लूट रहे हैं.
अंधी पीस रई कुत्ते खा रहे है
नव वर्ष की हार्दिक बधाई।
सुन्दर व उम्दा प्रस्तुति ।
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