प्राथमिकी दर्ज करने में पुलिस की कोताही की लगातार शिकायतों पर गृह मंत्रालय बेहद संजीदा है। अब उसने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को एक सकरुलर जारी करने का मन बनाया है, जिसमें उन्हें यह सुनिश्चित करने को कहा जाएगा कि थानों को मिलने वाली प्रत्येक शिकायत को एफ आई आर के तौर पर लिया जाए।
रुचिका छेड़छाड़ प्रकरण में उसके परिजनों द्वारा लगाए गए उस आरोप के बाद यह कदम उठाया जा रहा है, जिसमें कहा गया था कि उन्होंने जब हरियाणा के पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई तो पुलिस ने एफ आई आर लिखने से इनकार कर दिया था।
सीआरपीसी में प्रस्तावित संशोधन के जरिए सरकार यह व्यवस्था भी अनिवार्य बनाना चाहती है कि संबंधित थाना प्रभारी को एफ आई आर दर्ज करने व नहीं करने का कारण भी बताना होगा। इस सकरुलर का उद्देश्य है कि अगर कोई शिकायत झूठी हो तब भी पुलिस को प्राथमिकी दर्ज कर उसकी जांच करनी चाहिए।
एक अधिकारी ने बताया कि अगर शिकायत गलत पाई जाती है तो पुलिस प्राथमिकी हटा सकती है, लेकिन उसे सही शिकायतों को प्राथमिकी के तौर पर दर्ज करने में बाधक नहीं बनाना चाहिए।
इसके अतिरिक्त सरकार ऐसी व्यवस्था लागू करने पर भी विचार कर रही है, जिसके तहत कोर्ट द्वारा किसी मामले में दोषी ठहराए गए पुलिस अधिकारी केवीरता पुरस्कार और मेडल स्वत: निरस्त हो जाएं। सूत्रों ने बताया कि गृह सचिव जीके पिल्लई की अध्यक्षता में 4 जनवरी को होने वाली पुरस्कार समिति की बैठक में इस संबंध में नियम तय किए जा सकते हैं।
आईपीसी के सेक्शन 154 के तहत एफ आई आर दर्ज होती है और एफ आई आर संगीन अपराध होने पर दर्ज होती है ।
पुलिस शिकायत को दो श्रेणियों में बांटती है- संज्ञेय अपराध व असंज्ञेय अपराध । संज्ञेय अपराध में एफ आई आर दर्ज कर जांच की जाती है , असंज्ञेय अपराध में फरियादी को कोर्ट में जाने की सलाह दी जाती है । कई मामलों में पुलिस को अधिकार होता है कि मामले को किस श्रेणी में रखे।
दबाव में गंभीर अपराधों की एफ आई आर में आनाकानी तथा सेक्शन लगाने में भी पुलिस अपने अधिकार का उपयोग करती है । कई बार लिखित शिकायत रोजनामचा में दर्ज ही नहीं होती।
पीड़ित की शिकायत पर पुलिस को अब एफ आई आर दर्ज करनी होगी ,मामले की जांच कर केस डायरी कोर्ट में पेश करनी होगी । दबाव के बावजूद पीड़ित को न्याय मिलने की संभावना बढ़ जाएगी ।
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