कार्यपालिका और विधायिका में सब चोर-बदमाश और न्यायपालिका में सब साधु संत

बात भ्रष्टाचार और कामचोरी की हो तो देश के संदर्भ में बुद्धिजीविता की जुगाली करने वाले अपने दोनो हाथों की हर उंगली अंगूठे के साथ साथ पैरों की उंगलियां भी कार्यपालिका और विधायिका की तरफ उठा देते हैं। बुद्धिजीवियों की नजरों में राजनेता भ्रष्ट और दुराचारी हैं, अफ़सर शाही इतनी भयंकर है कि भ्रष्टाचार ही काम करने का उचित मार्ग प्रतीत होने लगा है। सब चोर हैं, बदमाश हैं, लम्पट हैं, औरतों और रिश्वत को देख कर लार टपकाने लगते हैं। जिसे देखिये वही मुंह उठा कर मीडिया, विधायिका और कार्यपालिका को पानी पी-पीकर कोसता है। अब यदि सीधे ही देखा जाए तो भ्रष्टाचार लोकतंत्र के हर स्तम्भ में समा गया है लेकिन क्या कारण है कि इन बुद्धिजीवियों को न्यायपालिका में भ्रष्टाचार दिखायी ही नहीं देता या न्यायपालिका से जुड़े सारे लोग साधु संत हैं। इस देश में न्यायपालिका और सेना भी भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है लेकिन मजाल है कि कोई इनके बारे में चूं चां भी कर दे। उसका कारण है विधि का शासन। हमारे प्यारे देश भारत में कानून का शासन चलता है पता है न.....? रूल औफ़ ला.....। जो लोग इस प्रणाली से जुडे हैं उनके हाथ में डंडा है अगर कोई उनके आचरण पर उंगली उठाए तो वो उसी डंडे से उंगली का भुरकस बना देंगे और आप कोई छिपकली तो हैं नहीं कि पूंछ कट गयी तो चिन्ता न करें दूसरी निकल आएगी; इसलिये जिनकी उंगली शहीद हुई है या जिन्होंने इस प्रणाली के ठेकेदारों से कानूनी तौर पर मार खायी है उनकी तो आवाज ही निकलना बंद हो जाती है। हमारे जैसे जड़बुद्धि तो बिना सोचे किसी भी गलत बात को गलत कह देते हैं लेकिन बुद्धिजीवी लोग इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसी मुद्दे पर चर्चा करी जाए जिससे कि परेशानी न खड़ी हो और सनसनी भी फैली रहे कि फलनवा बहुत बुद्धिमान है कितनी बड़ी बात करता है। सारे वकील, जज, कचहरी के क्लर्क साधु संत होते हैं वो कभी एक पैसा तक रिश्वत नहीं लेते, उन सबके चरित्र अत्यंत उज्ज्वल रहते हैं वे सब दूध से नहाते हैं। ये बात हम नहीं बुद्धिजीवी कहते हैं, नहीं ..... वे ये भी नहीं कह पाने का साहस जुटा पाते।
जय जय भड़ास

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