यू.एस.ए. में भड़ास के चाहने वाले....

वैसे तो साम्राज्यवाद से भड़ासी हमेशा से चिढ़े रहते हैं और जी भर कर कोसते भी हैं। भड़ास सत्यतः उन लोगों का मंच बन कर उभरा है जो खेतों के किनारे बैठ कर चटनी रोटी खाकर बीड़ी पी रहे हैं तम्बाकू खा कर थूक रहे हैं और बुरी व्यवस्थाओं के लिये सरकार को कोस रहे हैं, अपनी देसी भाषा में गालियां देते हुए दोबारा खेती में जुट जाते हैं या आम निम्न मध्यमवर्गीय परिवार का आदमी जो कि मंहगाई और टैक्स के बोझ से मरा जा रहा है, मिलों के मजदूर जो दिनरात हड्डियां पेल कर काम करने के बाद भी सामान्य जीवन नहीं जी पा रहे।
पिछले कुछ समय हमने देखा है कि भड़ास पर आने वाले मेहमान अमेरिका के इंडियाना पोलिस(इंडियाना), माउंटेन व्यू(कैलीफोर्निया), डल्लास(टैक्सास), सैन एन्टोनिओ(टैक्सास),बेवरली हिल्स(कैलीफोर्निया), एलिआन्स(ओहियो) आदि जगहों से नियमित रूप से आ रहे हैं। मुझे ये पता चलता है कि वे क्या देखते हैं कितना देर तक देखते हैं। मुझे पूरा यकीन है कि ये वो लोग हैं जो कि कहीं न कहीं अपने देश से जुड़े रहे होंगे। उनकी जड़े तो इस गरीब देश में ही हैं सो भड़ास के पन्ने पलट कर देसज अनुभूतियों को महसूस कर लेते होंगे, बिछुड़े हुए वतन की मिट्टी की सुगंध है भड़ास के हर पन्ने पर जो उन्हें रोज ही इधर खींच लाती है।
हम तहेदिल से अपने इन भाई बहनों का भड़ास पर स्वागत करते हैं और उनसे अपेक्षा रखते हैं कि वे भी अपने बारे में यदि लिखना चाहें तो दिल खोल कर लिखें ये भड़ास है आप यहां आकर मानसिक आरोग्य प्राप्त कर सकते हैं विचार रेचन का लाभ लेकर। शायद हम सभी एक ही वैचारिक तल पर ज़िन्दगी जी रहे हैं यही वजह है आप सबके भड़ास पर नियमित रूप से आने की। अब मुझे विश्वास हो गया है कि हमारा भड़ास परिवार दुनिया के दूसरी तरफ भी फैल चुका है जो कि जाति - धर्म - भाषा- रंगभेद- लिंगभेद - क्षेत्र आदि जैसी तुच्छ बातों से बहुत ऊपर है। हम सिर्फ़ इंसान हैं जो कि इस प्यारी धरती पर मिलजुल कर रहना चाहते हैं। देशों की सीमा हमारे प्यार पर बाध्यकारी नहीं है। एक बार फिर हमारे इन भड़ासी परिवारी जनों को भड़ास के संचालक मंडल और सभी भड़ासियों की तरफ से स्वागत और ढेर सारा प्यार
जय जय भड़ास

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